(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
चोरी से बिकता जहाँ, है आधा संसार |
वित्त कमाने के लिये, लगा रूप-बाज़ार !!
फुटपाथों पर रह रहे, कई लोग मज़बूर |
रोटी-रोज़ी के लिये, भटके घर से दूर ||
पेट भरें वे किस तरह, सहें भूख-सन्ताप
फँसे बेबसी में करें, घोर घिनौने पाप !!
आग बुझाने जठर की, हैं कितने लाचार !
वित्त कमाने के लिये, लगा रूप-बाज़ार !!1!!
सदाचार क्या चीज़ है, इन्हें नहीं कुछ ज्ञान |
घर की इज़्ज़त बन गयी, रोटी का सामान !!
अड्डे जुवे के हैं कई, घर पापों के धाम !
कई तरह से ये सभी, हुये बहुत बदनाम !!
होते रातों में जहाँ, खुल कर यौनाचार !
वित्त कमाने के लिये, लगा रूप-बाज़ार !!2!!
धर्म-जाति से हीन ये, रोटी इनका धर्म !
इनकी घरनी- बेटियाँ, बेचा करतीं शर्म !!
इस बस्ती की नारियाँ, नर-आखेट-प्रवीण !
करतीं होटल क्लबों में, हैं रातें रंगीन !!
इन को भाती है सदा, नोटों की बौछार !
वित्त कमाने के लिये, लगा रूप-बाज़ार !!3!!
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 6-11-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1789 में दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
Wakayi sab khatam hota ja raha hai ab ... Bahut steek prastuti !!
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