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मंगलवार, 6 अगस्त 2013

मंगल-गीत (१)राम करे !


मेरे प्रिय मित्रों, हाथ में फ्रेक्चर तथा पाँव  सहित सारे दायें  धड़ में कई घातक गुम् चोटें होने के कारण  इतनी समय से आप से अलग रहा | ०१ जूँ को एक दुर्घटना से पाया यह कष्ट अभी भी  है | ०१ जूँ से ०८ जुलाई तक लगे प्लास्तर के कटने के बाड़ अब कुछ दायें हाथ की उंगलियाँ चली हैं तो आप की सेवा में  लाभान्वित हूँ |
नवारम्भ मंगल गीतों से कर रहा हूँ |कुछ समय बाद अपनी बात भी कहूंगा जो कहता आया हूँ | अब यथा -
सम्भव नियमित जुड़ा रहने का प्रयास रहेगा | शेष इश्वर की इच्छा ! आप सब का आशीर्वाद !! शुभकामनाओं 
सहित एक आधुनिक बारहमासी प्रस्तुत है | बारहमासी  की लोक-गीत- परम्परा  को कुछ नये ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास है |आप का उत्साहवर्द्धक आशीष मिले |
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राम करे सारे भारत में पनपें खुशियाँ सारी |
रहें नाचते, हँसते-गाते, हर प्रदेश नर नारी ||
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रोज़गार की कमी नहीं हो, काम सभी पा जायें |
अनब्याही बेटियाँ सरलता से अपाना वर पायें ||
जिनके जनक न पैसे वाले, वे भी रहें न क्वाँरी |
राम करे सारे भारत में पनपें खुशियाँ सारी ||१||

सावन ‘प्रेमी’ जोड़े  झूलें,  निर्भय प्यार के झूले |
‘प्रिय’ आ जायें ‘प्रिया-मिलन’ को, परदेशों में भूले ||
‘अभिलाषायें’ पूरी कर लें, तपीं विरह से ‘प्यारी’ |
राम करे सारे भारत में पनपें खुशियाँ सारी ||२||

भादों में हर  ‘राधा’ पाये,  अपना  ‘कुँवर कन्हाई’ |
‘प्यास’ बुझे, ‘जल-धार मिलन की’, बरसे राम दुहाई ||
‘गल बहियों’ में ‘हर्ष’ बटोरे, हर ‘सजनी’ मतवारी |
राम करे सारे भारत में पनपें खुशियाँ सारी ||३||

क्वाँर और कातिक में हर इक वर्ष रहे ‘खुशहाली’ |
सभी मनायें विजयादशमी औ जगमग दीवाली ||
हर मन रहे उजाला उजला, कहीं न हो अँधियारी |
राम करे सारे भारत में पनपें खुशियाँ सारी ||४||

अगहन, पूस, माह की ठण्डक, ‘बसन्त’ ले कर आये |
खिला हुआ हर फूल मनोहर, महकी गन्ध लुटाये ||
फागुन में होली के रंग में तार कर दे पिचकारी |
राम करे सारे भारत में पनपें खुशियाँ सारी ||५||

‘सुगढ़ व्यवस्था जल- वितरण की’, सब की प्यास बुझाये |
चैत और वैशाख, जेठ में ‘ताप’ न कहीं सताये ||
‘मानसून के बादल’ जनते रहें, ‘समुन्दर खारी; |
राम करे सारे भारत में पनपें खुशियाँ सारी ||६||

हर अषाढ़ में ’व्यास’ लुटायें अपने ‘ज्ञान’ की गरिमा |
बनी रहे सब के अन्तर में, घटे न ‘प्रीति- मधुरिमा’ ||
मिले ‘चेतना’ उम लोगों को, जिन की मति हो मारी |
राम करे सारे भारत में पनपें खुशियाँ सारी ||७||

दूर रहें ‘अभिशाप’, दिशायें, दस हों शुभ वरदायी |
मिलें किसी को दुःख तो सुख से हो उस की भरपाई ||
हर मौसम में “प्रसून” महकें, विहँस उठे  ‘किलकारी’ |
  राम करे सारे भारत में पनपें खुशियाँ सारी ||८||
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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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