(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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सत्य-शिवोमय कल्पना, का हो गया
विनाश |
‘अति जनसंख्या’ ने किया,
‘सुन्दरता’ का नाश ||
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मैला जल
हर नदी का, मैला है हर ताल |
जल-विहार
कैसे करें, सारस, बतख, मराल ||
बढ़ते वाहन
उगलते, तीखी मैली गन्ध |
व्यर्थ
इत्र का छिडकना, है इतनी दुर्गन्ध ||
मैली ‘धरती’ हो गयी, ‘मैला’ है
‘आकाश’ |
‘अति जनसंख्या’ ने किया,
‘सुन्दरता’ का नाश ||१||
डीज़ल औ पेट्रोल के, जलने से हर ओर |
प्राण-वायु कम हो गयी, बढ़ी ‘मलिनता’ घोर ||
‘प्रकृतिप्रिया की चल रही, घुटी घुटी सी साँस |
‘आकर्षण’ फीका पड़ा, धुँधला हुआ है हास ||
मैला सूरज-चाँद का उज्जवल-धवल
प्रकाश |
‘अति जनसंख्या’ ने किया,
‘सुन्दरता’ का नाश ||२||
फैक्ट्री-वाहन
कर रहे, इतना भीषण शोर |
अब
‘कर्कशता’ बाँटते, हम को ‘संध्या-भोर’ ||
“प्रसून”
माँ की लोरियाँ, हैं कितनी बेजान |
‘घरघर-खटपट’
नाद से, कुण्ठित शिशु के कान ||
‘शान्ति-हिरणी’ फांसने, पड़ा
‘प्रदूषण-पाश’ |
‘अति जनसंख्या’ ने किया,
‘सुन्दरता’ का नाश ||३||
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