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मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ढ)धरती का भार |(३)विनाश |

(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 
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सत्य-शिवोमय कल्पना, का हो गया विनाश |
‘अति जनसंख्या’ ने किया, ‘सुन्दरता’ का नाश ||
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मैला जल हर नदी का, मैला है हर ताल |
जल-विहार कैसे करें, सारस, बतख, मराल ||
बढ़ते वाहन उगलते, तीखी मैली गन्ध |
व्यर्थ इत्र का छिडकना, है इतनी दुर्गन्ध ||
मैली ‘धरती’ हो गयी, ‘मैला’ है ‘आकाश’ |
‘अति जनसंख्या’ ने किया, ‘सुन्दरता’ का नाश ||१||


डीज़ल औ पेट्रोल के, जलने से हर ओर |
प्राण-वायु कम हो गयी, बढ़ी ‘मलिनता’ घोर ||
‘प्रकृतिप्रिया की चल रही, घुटी घुटी सी साँस |
‘आकर्षण’ फीका पड़ा, धुँधला हुआ है हास ||
मैला सूरज-चाँद का उज्जवल-धवल प्रकाश |
‘अति जनसंख्या’ ने किया, ‘सुन्दरता’ का नाश ||२||


फैक्ट्री-वाहन कर रहे, इतना भीषण शोर |
अब ‘कर्कशता’ बाँटते, हम को ‘संध्या-भोर’ ||
“प्रसून” माँ की लोरियाँ, हैं कितनी बेजान |
‘घरघर-खटपट’ नाद से, कुण्ठित शिशु के कान ||
‘शान्ति-हिरणी’ फांसने, पड़ा ‘प्रदूषण-पाश’ |
‘अति जनसंख्या’ ने किया, ‘सुन्दरता’ का नाश ||३||

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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