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रविवार, 15 दिसंबर 2013

नयी करवट (दोहा-ग़ज़लों पर एक काव्य ) (५)कागज़ की नाव (क)उलूक-गिद्ध |

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धन जिनका ‘भगवान’ है, ‘लक्ष्मी; करते सिद्ध |
‘तन-मन’ दोनों खोखले, ऊपर से समृद्ध ||
करें रात में तस्करी, दिन में बनें ‘दलाल’ |
इनमें कई ‘उलूक’ हैं, हैं थोड़े से ‘गिद्ध’ ||
साम-दाम या दण्ड से,या फिर ‘भेद-कुनीति’ |
चल कर छल से हो गये, कुछ तो जगत्प्रसिद्ध ||


कुछ ‘कुबेर’ के लाल हैं, कुछ ‘कारूँ’ के लाल |
शासन ‘पूजीवाद’ का,करने को कटिबद्ध ||
‘मनमानी’ के ‘धनुष’ पर, ‘अपराधों’ के ‘बाण’ |
‘अनुशासन’ के जिस्म पर, करते रहते बिद्ध ||
‘असुर-दानवों’ के सदा, रहते ‘खुदमुख्तार’ |
‘पाप-ज्ञान’ के ‘ग्रन्थ’ के,प्रवीण और प्रबुद्ध ||


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मेरे ब्लॉग 'प्रसून' पर 'घनाक्षरी-वाटिका' में आप का स्वागत है !   



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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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