जब तक बहु प्रचार प्राप्त 'धर्म-दानवों' का विनाश नहीं होता और
मुझे जीवन मिले, तब तक कभी कभी अपने भाव इस धारा में
प्रवाहित रखूँगा ! साधारण मनुष्य के इस प्रकार के अपराध से कई
सहस्र गुना(जितने इस के अनुयायी हैं उतना गुना) इस 'धर्म-दानव'
का दण्डनीय अपराध है !!
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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‘पोल’ खुल गयी, हो गया, है अब ‘ख़स्ता हाल’ |
‘ईश्वर’ खुद को कह रहा, था रच कर
जंजाल ||
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‘पिश्ता-काजू’ खा हुआ, है
यह ‘मोटे पेट’ |
है ‘बाबा’ के भेस में, ‘पूँजी धारी सेठ’ ||
क्या लेना है ‘नाम’ से, कुछ भी रख लो नाम |
चलो, नाम भी रख लिया, मानो ‘झाँसाराम’
||
मालिक ‘दसियों अरब’ का, है ‘कुबेर
का लाल’ |
‘ईश्वर’ खुद को कह रहा, था रच कर
जंजाल ||१||
इस ‘कूकर’ के गले में, ‘सोने की जंजीर’ |
‘माया’ में उलझा हुआ, बनता ‘सन्त-प्रवीर’ ||
लोग हमारे देश के, अब भी कुछ ‘कंगाल’ |
‘खून-पसीना’ बहा कर, खाते ‘रोटी-दाल’
||
एक तरफ़ यह ‘पौण्ड्रक’, खाता था ‘तर
माल’ |
‘ईश्वर’ खुद को कह रहा, था रच कर ‘जंजाल’
||२||
‘प्रसून” हद से
गुजर कर, ‘सीमाओं’ को तोड़ |
जीत गया यह
‘दैत्य-नर’, शैतानों से होड़ ||
हर ‘पैशाचिक
साधना’, का था यह ‘उस्ताद’ |
बोता ‘ज्ञान के
खेत’ में, यह ‘ज़हरीली खाद’ ||
फांस रहा था ‘मछलियाँ’, ‘धर्म की
बंछी’ डाल |
‘ईश्वर’ खुद को कह रहा, था रच कर
जंजाल ||३||
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