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शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(छ)चोरों का संसार (३)सारे चोर यहाँ | (एक गंभीर व्यंग्य)


संविधान का कहीं भी , किसी भी प्रकार से उल्लंघन चोरी है! क़ानून की चोरी ! घूस, कोई भ्रष्टाचार, अन्याय 

अपहरण, कालाबाजारी, जमाखोरी, कर चोरी, आदि सब चोरियाँ हैं ! यह रचना  एक स्वप्न के आधार पर लिखी गयी  है | चोरों ने आपस में बात चीत की और कवि ने उसे सुन कर उठाते भावों को 'रचना' में ढाल दिया | चोर कहा रहें है कि हमें सब चोर कहते हैं जब कि सभी चोर हैं !  

(सारे चित्र गूगल-खोज से साभार) 


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हम,तुम, वे, सारे चोर यहाँ !
फिर कहें किसे अब चोर यहाँ !!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
कुछ फांस ‘प्रेम के घेरे’ में-

‘मन की चोरी’ कर लेते है |

कुछ ‘काले कुटिल अन्धेरे’ में-

‘तन की चोरी’ कर लेते हैं ||

यहाँ ‘तख़्त’ चुराये जाते हैं-

यहाँ ‘ताज’ चुराये जाते हैं |

जो पहले चुराये जाते थे-

वे आज चुराये जाते हैं ||

कुछ लोग इसे ‘कलि युग’ कहते-

कहते हैं ‘समय का दौर’ यहाँ ||

हम,तुम, वे, सारे चोर यहाँ !

फिर कहें किसे अब चोर यहाँ !!१||


पहले तो ‘वासना के कामी’-

‘नारियाँ’ चुराते ‘रावण, बन |

पर आज,’वृद्ध’,’बालक’,‘नर’ सब-

चुरते हैं ऐंठने को कुछ धन ||

‘आवाज़’ की चोरी होती है-

यहाँ ‘साज़’ चुराये जाते हैं |

जो रक्खे जाते गुप्त कई-

वे राज़ चुराये जाते हैं ||

जो सब से बढ़ कर चोर यहाँ-

उस को कहते ‘सिर-मौर’ यहाँ ||

हम,तुम, वे, सारे चोर यहाँ !

फिर कहें किसे अब चोर यहाँ !!२||

 

‘माखन’, ‘दधि’, ‘छाछ’ चुराये थे-

‘गोकुल के कृष्ण कन्हैया’ ने |

‘दिल’ चुरा लिया ‘हर वृज-वासी’-

का ‘प्यारे रास रचैया’ ने ||

‘फिल्मों की दुनियाँ’ में, ‘अभिनय’-

‘अन्दाज़’ चुराये जाते हैं |

‘गोरी सुन्दरियों’ के ‘नखरे-

औ नाज़’ चुराये जाते हैं ||

‘रोटी-रोज़ी’ सब चुरते हैं-

चुरते हैं ‘मुहँ के कौर’ यहाँ ||

हम,तुम, वे, सारे चोर यहाँ !

फिर कहें किसे अब चोर यहाँ !!३||


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About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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