(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
कुछ पश्चिम की सभ्यता, कुछ अभाव का भार !
फँसा वासना-जाल में, है आधा संसार !!
महानगर में देखिये, अजब निराली शाम !
सस्ती महँगी बिक रही, सुन्दरता अभिराम !!
तन के लोलुप हैं कई, काम के प्यासे लोग !
रूप की सुरा खरीद कर, करते कामुक भोग !!
विकास ने कुछ घिनौने, कितने किये प्रहार !
फँसा वासना-जाल’ में, है आधा संसार !!1!!
हीरोइन-स्मैक की, लत के हुए गुलाम |
इन को पी, धन फूँक कर,घरआते हैं शाम ||
मज़दूरी कर दिवस भर, रचते कई फ़रेब
|
लगा जुवे के दाँव पर, खाली करते जेब ||
उनकी कुल-वधु-बेटियाँ, करतीं तन-व्यापार !
फँसा वासना-जाल में, है आधा संसार !!2!!
नशेड़ियों की झुग्गियाँ, बनीं भोग-बाज़ार !
इनमें बेबस नारियाँ, ललनायें लाचार !!
जिन पर गिरती भूख की, निठुर निगोडी गाज !
कई सुतायें बेचतीं, कोमल-कोरी लाज !!
निबटातीं ऋण रूप से, ले कर कई उधार !
फँसा ‘वासना-जाल में,है आधा संसार !!3!!
फसा नशे के जाल में है आधा संसार ,बहुत सुन्दर उद्देश्य परक रचना आधुनिक झरबेरियों और कुसंस्कृति की झलक लिए।
जवाब देंहटाएंसत्यवचन ….
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