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शुक्रवार, 8 मार्च 2013

!! जग उठो चलो ओ री नारी !! (नारी-दिवस पर विशेष) (ओज गुणीय काव्य- शंख-नाद से )

विश्व की सभी नारियों को प्रणाम ! नारी आधा संसार है तो, यही जग-संचालिका भी !! यह न तो भोग की साधन है , न ही खिलोना या मनोरंजन की साधन !! (चित्र गूगल-खोज से) 

!! जग उठो चलो ओ री नारी !! !!&*&*&*&*&&*&*&*&*&!!
तुम करो समर की तैयारी !
जग उठो चलो ओ री नारी !!

‘अत्याचारों की आँधी’ में
‘चट्टान’ बनो आयी बारी ||
जग उठो चलो ओ री नारी !!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
पी ‘अश्रु’ बाँटती हो ‘प्रहसन’ |
खा चोट, भरा करती ‘गुंजन’ |
उफ़ तलक न की,सह ली ‘पीड़ा’ |
वासना भरी ‘गँदली क्रीड़ा’ !!
‘कामुक दबाव’ में ‘खेल’ खेल |
वैवाहिक जीवन समझ ‘जेल’ ||
‘दीवारों’ में तुम बन्द रहीं |
अब तक न कभी स्वच्छ्न्द रहीं ||
मत सहमो बन के ‘हरिणी’ !
चिक्कारो बन कर ‘केहरिणी’ !!
तुम ऐसा ‘ओजस् घोष’ करो !
जग जाए यह दुनियाँ सारी ||
जग उठो चलो ओ री नारी !!१!!
तुम हो‘ विद्या’ हो तुम्हीं‘ कला’ |
तुम रहीं ‘सृष्टि’ को और चला ||
प्रतिभा’ तुम ही,तुम हो ‘गरिमा’ |
तुम ने यह सारा जग जन्मा ||
तुम ‘सुन्दरता’, तुम ‘कोमलता’ |
पर‘ अग्नि’, विश्व जिस में जलता||
वह ‘अग्नि’ नाम नारी का है |
‘ज्वाला’ स्वरूप नारी का है ||
तुम ‘डूबे’ के हित हो ‘तरिणी’ |
तुम बहतीं बन कर ‘निर्झरिणी’||
‘प्रेरणा’ बनो, मन मन में झरो |
‘दीनता’ तजो, तज लाचारी ||
जग उठो चलो ओ री नारी !!२!!

तुम ‘आदि पुरुष’ की भी जननी |
तुमसे उपजे अम्बर, अवनी ||
'सुमनों’ में तुम ही ‘गन्ध’ देवि 
तुम-ध्वनि’ से, जीवित छन्द देवि !!
ब्रह्मा के घर में सरस्वती |
शिव की तुम देवी महा सती ||
हरि की तुम ही देवी लक्ष्मी |
ऊर्जा’ बन कर कण कण में रमीं |
तुम ‘रसों’ में एक ‘सरसता’ हो |
शशि’,’रवि’ में ‘विभा’ की‘ क्षमता’ हो ||
सोये समाज में ‘शक्ति’ भरो !
मेटो  सारे     अत्याचारी !!
जग उठो चलो ओ री नारी !!३!!
निर्वेद-जननि’हो ‘शान्ति तुम्हीं |
उत्साह-जननि’ हो ‘क्रान्ति’ तुम्हीं ||
‘विप्लव-जननी’ हो ‘क्लान्ति’ तुम्हीं |
‘माया’ तुम ही हो ‘भ्रान्ति’ तुम्हीं 
|तुम ’बोध-जननि’ हो और ‘बुद्धि’ |
‘शुचिता’ तुम ही, हो तुम्ही,’ शुद्धि’ ||
‘भोगों’ में देखो, ’तृप्ति’ तुम्हीं |
‘तेजों’ में ‘कान्ति’ ’दीप्ति’ तुम्हीं |
‘मेघों’ में तुम्हीं ‘दामिनी’ हो |
संगीत’ में तुम्हीं ‘रागिनी’ हो ||
छंदों’ में ‘गति-यति’ बन उतरो !
गूँजे ‘तुम’ से दुनियाँ सारी ||
जग उठो चलो ओ री नारी !!४!!

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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