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सोमवार, 10 दिसंबर 2012

मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(झ)ऊँचे रिश्ते ‘प्यार’ के | (२)कितना ऊँचा ‘प्यार कानाता’! (''माधुर्य गुण''और 'प्रसाद गुण' का समन्वय)


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कितना ऊँचा ‘प्यार का नाता’ ‘महकी हुई बहार का नाता ||
‘उजड़े उजड़े सूने वन’ में-
भ्रमरों की गुंजार का नाता ||


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‘दुःख-सुख’ दोनों अंग लगाये |
‘मोती वाले सीप’ छुपाये ||
‘सोये सोये बालू तट पर-
‘लहरों वाले ज्वार’ का नाता |
‘दबे हुये इज़हार’ का नाता ||
कितना ऊँचा ‘प्यार का नाता’ !!१!!

 
‘मन की पीड़ा’ सभी भुलाये |
‘सारे जग के दर्द’ सुलाये ||
‘घायल मन’ पर, ‘मरहम’ जैसी-
गई गयी ‘मल्हार’ का नाता |
‘श्रावण-रस-बौछार’ का नाता ||
कितना ऊँचा ‘प्यार का नाता’ !!२!!

 ‘मर्यादा की रीति’ निभाये |
‘मन के सारे भाव’ छुपाये ||
सह कर ‘दर्द’, बटोरे ‘संयम’-
‘उस मिथ्या इनकार’ का नाता |
‘मन की मौन पुकार’ का नाता ||
कितना ऊँचा ‘प्यार का नाता’ !!३!!

‘शब्दों’ में ‘आल्हाद’ मिलाये |
‘तान भरा उन्माद’ मिलाये ||
‘नयनों’ से ‘मन’ में जो उतारे –
‘उस कोमल श्रृंगार’ का नाता |
‘स्नेह-सुरस आगार’ का नाता ||
कितना ऊँचा ‘प्यार का नाता’ !!४!!

‘प्रीति’, ‘उँगलियों’ से सहलाये |
‘नेह के निश्चल तार’ हिलाये ||
‘सोई मधुरिम तान’ जगा कर-
‘बजते ह्रदय-सितार’ का नाता |
‘सरगम के सुर-सार’का नाता ||
कितना ऊँचा ‘प्यार का नाता’ !!५!!


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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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