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बुधवार, 26 दिसंबर 2012

मेरी पुस्तक 'ठहरो मेरी बात सुनो' में एक ताज़ा सामयिक परवर्धन- 'माता की पुकार' (व्याजोक्ति)




भारत की गरिमा कई बार भंग हो चुकी है | पर अब तो हद हो गयी है | इतना घिनौना काण्ड, 'पशुता' 

का 'मानवता' पर आक्रमण ! सीधे तरीके से फैसला होने की वजाय,उलझता जा रहा है 'न्याय' का 

फरिश्ता !! भारत माता आज 'हैप्पी क्रिमस' कहे तो कैसे कहे !!! (सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)   

'हैप्पी क्रिसमस' मैं कह देती, पर मेरा 'दिल' घायल है | 

ओ मेरे सपूत !सुन लों तुम, माता 'रहम' के क़ाबिल है ||

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कहीं 'लड़ाई भाषाओं की', कुछ 'धरती' के लिये लड़े |

कई लड़े हैं, 'धन-दौलत' को, कुछ 'कुर्सी' के लिये लड़े ||

कोई लड़ाई हो मत भूलो, लड़ाने वाला 'जाहिल' है || 

'हैप्पी क्रिसमस' मैं कह देती, पर मेरा 'दिल' घायल है | 

ओ मेरे सपूत !सुन लों तुम, माता 'रहम' के क़ाबिल है ||१|| 



कैसे 'मेरे पूत' हो गये, 'सुन्दर-तन' के भूखे हैं | 

'हविश-धूप' से 'करुणा' सूखी,'नयन के छागल' सूखे हैं ||

इनके 'व्यवहारों' में 'भीषण पशुता वाले जंगल' हैं  ||

'हैप्पी क्रिसमस' मैं कह देती, पर मेरा 'दिल' घायल है | 

ओ मेरे सपूत !सुन लों तुम, माता 'रहम' के क़ाबिल है ||२||



मुझको चिन्ता, आयी कैसे 'अखलाकों' में यह 'खामी' !  

"प्रसून" किससे करें शिकायत, होगी कितनी बदनामी !!

उफ़,लगता है, 'भाग्य-गगन' में उठा 'प्रलय का बादल' है ||

'हैप्पी क्रिसमस' मैं कह देती, पर मेरा 'दिल' घायल है | 

ओ मेरे सपूत !सुन लों तुम, माता 'रहम' के क़ाबिल है ||३||



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About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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