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गुरुवार, 23 अक्तूबर 2014

साथ जलायें दीप !

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

 

छोट-बड़े का भेद तज, हों सब आज समीप !

भेद-भाव को त्याग कर, साथ जलायें दीप !!

दूर हुये जो रूठ कर, उन्हें मनायें आज !

टूटन-टूटन में बंटा, जोड़ें सकल समाज !!

प्रेम-नगाड़े पर लगे, ऐसी प्यारी थाप !

आवाजों पर खुलें दिल, हर कुण्ठा हो साफ़ !!

एक साथ झूमें सभी, निर्धन या कि महीप !

भेद-भाव को त्याग कर, साथ जलायें दीप !!1!!

       

चलो बुहारें हर डगर, करें हर गली स्वच्छ !

मैल मिटे हर तरह की, परोक्ष या प्रत्यक्ष !!

भागें मुहँ काला किये, काले-कलुष विकार !

हर अन्धेरे पर करें, प्रकाश की बौछार !!

घृणा-वैर-तम में जलें पजरें प्रेम-प्रदीप !

भेद-भाव को त्याग कर, साथ जलायें दीप !!2!!

         

लगे बुहारी प्रीति की, मिटे मनों की मैल !

दोष-मलिनता-रहित हो, हृदय-हृदय की गैल !!

चमक-दमक से पूर्ण हो, हर घर का परिवेश !
तभी दिवाली सार्थक, कर सकता यह देश !!
चमकायें हर सदन को, रँग-रोगन से लीप !
भेद-भाव को त्याग कर, साथ जलायें दीप !!3!! (गैल=गलियारी)
 


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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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