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मंगलवार, 26 मार्च 2013

होली आई है !! (१) बजा के मधुरिम ढोल,होली आई है |




बजा के मधुरिम ढोल, होली आई है |
कर के प्रेम-किलोल, होली आई है ||
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‘प्रेम’ में ‘निठुर विषाद’ न डालो |

 ‘शान्ति’ में  अवसाद न डालो ||

वतन में ‘प्रान्त-वाद’ न डालो |

‘फ़सल’ में ‘विष की खाद’ न डालो ||


जीवन है अनमोल, होली आई है |

लगा के उस का मोल, होली आई है ||

बजा के मधुरिम ढोल, होली आई है ||१||



लोलुपता ‘यौवन’ पर धन की |

 प्यास बढ़ी जिनमें ‘जीवन’ की ||

कपटी और कुचाली-सनकी |

नकाब डाले भोलेपन की ||

खोल के उन की पोल, होली आई है |

तोड़ के ‘शंख-ढपोल’, होली आई है ||
  
बजा के मधुरिम ढोल, होली आई है ||२||




‘मानवता-हिरनी’ अति भोली |

 ‘कपट की नागिन’ डसने दौड़ी ||



चाल है ‘छल’ की बड़ी निगोड़ी |

 खाल ‘गधों’ की ‘शेर’ ने ओढी ||
   
हटा के, ‘ओढ़ा खोल’, होली आई है |

दिखा के ‘असली चोल’, होली आई है ||
     
  बजा के मधुरिम ढोल,होली आई है ||३||

                        

                       

‘बेशर्मी’ का नयन में ‘अंजन’ |

 ‘कामी’ हो गये, ‘भोले खंजन’ ||

‘काम-वासना’ का ‘रति-प्रणयन’ |

 ‘मर्यादा-चादर’ में सिमटन ||


मिटा के सारे झोल, होली आई है |

 कर के प्रेम-किलोल, होली आई है |

बजा के मधुरिम ढोल, होली आई है ||४||



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About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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