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मंगलवार, 21 मई 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ठ) आधा संसार | (नारी उत्पीडन के कारण) (२) दहेज़-दानव (iv)पीड़ित बेटियाँ |

मुझे अच्छी तरह मालूम है कि दहेज़ देने वाला बाप कभी भी नहीं कहता कि उस ने दहेज़ दिया | बेटी के लिये वर ढूँढना भगवान ढूँढने से भी कठिन है | बेटी के विवाह के नाम पर माँ बाप बिक जाते हैं | हाँ कभी  कभी चमत्कार  की तरह बहुत  महान  उदार  बाप मिल जाता है जो दहेज़ नहीं मांगता | यह बात सब कोम मालूम है किन्तु ध्यान नहीं देते | मेरे भावुक मन में इस 'भीषण कुप्रथा' की गहरी छाप है |आर्थिक भ्रष्टाचार का एक बड़ा अंश दहेज़ है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

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‘दर्द’  सह रहा  अनगिनत,  है  ‘आधा संसार’ |
कितनी  पीड़ित  बेटियाँ,  सहतीं  ‘अत्याचार’  ||

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देख  ‘सुता  की  दुर्दशा’,   कितना  रोता  बाप |
‘मुआ’  अधमरा  कर गया,  दहेज़ का सन्ताप’ ||
यह  दहेज़  है  आजकल,  जैसे  ‘विष की बेलि’ |
इसे  ‘सभ्यता’  किस  तरह, सकेगी बोलो  झेल ||
रोको,  रोको,  रोक  लों,  यह   ‘पापी  व्यापार’ |
कितनी  पीड़ित  बेटियाँ,  सहतीं  ‘अत्याचार’ !!१!!


‘दहेज़’ में धन लूट  कर,  ‘खून’  लिया  है  चूस |
जैसे  दफ़्तर  में  कोई,  ‘लोभी’   मांगे   ‘घूस’ ||
‘सूत का मूल्य’ न माँग तू , बड़ा  घोर यह ‘पाप’ |
‘मानवीय  सम्बन्ध’  को  मत  ‘पैसे’  से  माप ||
इस  दहेज़ का चलन तो,  है  धरती  पर  ‘भार’ |
कितनी  पीड़ित  बेटियाँ,  सहतीं  ‘अत्याचार’ !!२!!


‘यह  दहेज़  की  कुप्रथा’,  एक  ‘विषैला  साँप’ |
इसके  ‘पैने दंश’  से,  नारी  उठी   है  काँप  ||
इस  ‘अजगर’ की ‘दाढ़’  में, फँसे  ‘नेह-खरगोश’ |
‘मृदुला संस्कृति’ मर मिटी, फिर भी हमें न ‘होश’ ||
‘प्रीति-कोमला’ पर पड़ी,  ‘लोभ’ की  ‘भीषण मार’ |
कितनी  पीड़ित  बेटियाँ,  सहतीं  ‘अत्याचार’ !!३!!
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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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