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मंगलवार, 27 अगस्त 2013

कृष्ण-कन्हैया (१) कन्हैया मेरे

आप सभी को 'कृष्ण-जन्माष्टमी' की हार्दिक भा-भीनी वधाई ! हे कृष्ण! भारत के धर्म पर पड़ी करारी गहरी चोट पर कोई मरहम लगाओ !! 
आज वर्तमान की 'विद्रूप परिस्थितियों' से मन खिन्न हो कर कृष्ण-प्रेम की और जा पहुँचा |वैसे भी कृष्ण-जन्माष्टमी का पर्व है आज ! सो कुछ दिन भजन प्रस्तुत हैं |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार )

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हैं कन्हैया मेरे श्यामले श्यामले |
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मेरे ‘कान्हां’ ने सब को दिया प्यार यों |
और सब पर ही उन का था उपकार यों ||
औ सभी में वे ऐसे थे  घुल मिल गये-
वृज के सब लोग उन पर हुये बावले |
हैं कन्हैया मेरे श्यामले श्यामले ||१||


मार ‘दानव’ था कल्याण सब का किया |
‘पाप का बोझ’, ‘धरती’ का हल्का किया ||
बात सच है कि, भक्तों के भगवान ने-
तारा दुष्टों को, ‘मानव’ का अवतार’ ले |
हैं कन्हैया मेरे श्यामले श्यामले ||२||


तेरे ‘कर्मों के सब जाल’ कट जायेंगे |
तेरे पापों के जंजाल’ कट  जायेंगे  ||
सारे देवों से तेरी पड़ी गरज़ क्या?
देर करना न तू, उन का ही नाम ले |
हैं कन्हैया मेरे श्यामले श्यामले ||३||

तेरा जीवन जो बिगड़ा संवर जायेगा |
देख तू ‘भव का सागर’ उतर जाएगा ||
तेरी सब उलझनों को वे कर दूर दें -
‘मन ! जो दामन तू उन का अगर थाम ले |
हैं कन्हैया मेरे श्यामले श्यामले ||४||

‘प्रेम का यों तू हल्का ‘उजाला’ न कर !
‘अपने मन के पटल’ को तू ‘काला’ न कर !!
सार्थक तो तभी ‘नेह’ कान्हां से हो-
मन की आँखों को ‘श्रद्धा’ से तू आँज ले !
हैं कन्हैया मेरे श्यामले श्यामले ||५||


कोई ‘दौलत’ नहीं टिक सकी है कभी |
‘सम्पदा’ साथ क्या जा सकी है कभी ??
‘भक्ति’ औ ‘प्रेम’ का साथ ‘जन्मों’ का है-
समझ ले यह “प्रसून”, अक्ल से काम ले !
हैं कन्हैया मेरे श्यामले श्यामले ||६||



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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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