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मंगलवार, 28 अगस्त 2012

शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य(य) प्रयाण गीत-(१) !देश के जवान हो बढ़े चलो!



प्रयाण गीत



देश के जवान हो बढ़े चलो !


इसकी आन-बान हो बढ़े चलो !!

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‘अपना इतिहास’ तुम्हें अपने आप लिखना है |
चल रही है ‘कर्म-लेखनी’ न इसे रुकना है ||
बढ़ो ‘नदी-प्रवाह’ से,चलो-चलो,रुको नहीं !
‘अपनी माँ की शान’ हो,बढ़े चलो !
‘क्रम-रत सन्तान’ हो,बढ़े चलो !!
देश के जवान हो,बढ़े चलो !!
इसकी आन-बान हो,बढ़े चलो !!१!!
 


संकट हो देश पर तो अपने प्राण त्याग दो !

‘चेतना की ज्योति’जगे, ऐसी फूँक आग दो !!

‘चेतना’ है नाम जिन्दगी का दूसरा सुनो !
‘तुम वतन के प्राण’ हो,बढ़े चलो !
इसके ‘परित्राण’ हो,बढ़े चलो !
देश के जवान हो,बढ़े चलो !!
इसकी आन-बान हो,बढ़े चलो !!२!!


‘स्वत्व’निज जलाओ तो,जले ‘दिया प्रकाश का’|
श्रम करो, बनाओ एक तुम ‘भवन विकास का’||
सहज में ही नाप लोगे, ‘गगन की बुलन्दियाँ’ |
‘प्रगति की उड़ान’  हो,बढ़े चलो !!
‘विकास के निशान’ हो,बढ़े चलो !
देश के जवान हो,बढ़े चलो !!
इसकी आन-बान हो,बढ़े चलो !!३!!
  
‘मनुजता ही धर्म है’,यही प्रचार तुम करो !
‘प्रेम के प्रकाश’,का सदा प्रसार तुम करो !!
घृणा और वैर का समूल नाश तुम करो !
‘सत्य’औ ‘ईमान’हो बढ़े चलो !
‘गीता’औ’क़ुरान’हो,बढ़े चलो !!
देश के जवान हो,बढ़े चलो !!
इसकी आन-बान हो,बढ़े चलो !!४!!
 

‘काली रात’ ‘अन्ध्कार’ओढ़ कर के आई है |
‘चादर’में ‘जुगनुओं’ को जोड़ कर के आई है !!
‘रात’सदा चाहती है ‘सत्ता अन्धकार की’ |
तुम ‘प्रकाशवान’ हो,बढ़े चलो !
दिवाकर सामान हो बढ़े चलो !!
देश के जवान हो,बढ़े चलो !!
इसकी आन-बान हो,बढ़े चलो !!५!!
‘जल-विहीन बादलों’ की ‘घटा’यहाँ छायी है |
बिन बुलाये ‘अमावस की रात’ यहाँ आयी है ||
सारे विश्व में प्रसिद्ध ‘रोशनी’के लिये हो !
‘चन्द्रमा के मान’हो बढ़े चलो !
तुम तड़ित सामान हो बढ़े चलो !!
देश के जवान हो,बढ़े चलो !!
इसकी आन-बान हो,बढ़े चलो !!६!!
 
हाथ में हो ‘कलम’या कि,’फावड़ा’ ‘कुदाल’ हो |
मन में छोटे-बड़े का न तनिक भी सवाल हो ||
‘संगठन की गोद’ में पलीं सदा ‘बुलन्दियाँ |
‘एकता-विधान’ हो,बढ़े चलो !
तुम गगन-समान हो बढ़े चलो !!
देश के जवान हो,बढ़े चलो !!
इसकी आन-बान हो,बढ़े चलो !!७!!
 

शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(द) -जागरण गीत- (६) !!!जग उठो चलो ओ री नारी!!


 

                                   


    

!!!जग उठो चलो ओ री नारी!!!



!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

 

तुम करो समर की तैयारी !

जग उठो चलो ओ री नारी !!

‘अत्याचारों की आँधी’ में –

‘चट्टान’बनो आयी बारी ||

जग उठो चलो ओ री नारी !!

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!               

                                             

पी ‘अश्रु’बाँटती हो ‘प्रहसन’ |

खा चोट,भरा करती‘गुंजन’ |

उफ़ तलक न की,सह ली ‘पीड़ा’-

वासना भरी ‘गँदली क्रीड़ा’ !!

‘कामुक दबाव’में‘खेल’खेल |

वैवाहिक जीवन समझ ‘जेल’||

‘दीवारों’ में तुम बन्द रहीं |

अब तक न कभी स्वच्छ्न्द रहीं ||

मत सहमो बन के ‘हरिणी’ !

चिक्कारो बन कर ‘केहरिणी’ !!

तुम ऐसा ‘ओजस् घोष’ करो !

जग जाए यह दुनियाँ सारी ||

जग उठो चलो ओ री नारी !!१!!

  
 



तुम हो‘विद्या’,हो तुम्हीं‘कला’ |

तुम रहीं ‘सृष्टि’ को और चला ||

‘प्रतिभा’तुम ही,तुम हो ‘गरिमा’ |

तुम ने यह सारा जग जन्मा ||

तुम ‘सुन्दरता’, तुम ‘कोमलता’ |

पर‘अग्नि’,विश्व जिस में जलता||

वह‘अग्नि’नाम नारी का है |

‘ज्वाला’ स्वरूप नारी का है ||

तुम ‘डूबे’ के हित हो ‘तरिणी’ |

तुम बहतीं बन कर ‘निर्झरिणी’|| 

‘प्रेरणा’बनो, मन मन में झरो |

‘दीनता’तजो,तज लाचारी ||

जग उठो चलो ओ री नारी !!२!!



  

तुम‘आदि पुरुष’की भी जननी |

तुमसे उपजे अम्बर,अवनी ||

‘सुमनों’ में तुम ही ‘गन्ध’ देवि !

‘तुम-ध्वनि’से,जीवित छन्द देवि !!

ब्रह्मा के घर में सरस्वती |

शिव की तुम देवी महा सती ||

हरि की तुम ही देवी लक्ष्मी |

‘ऊर्जा’बन कर कण कण में रमीं |

तुम ‘रसों’ में एक ‘सरसता’ हो |

‘शशि’,’रवि’में ‘विभा’ की‘क्षमता’हो ||

सोये समाज में ‘शक्ति’ भरो !

मेटो अत्याचारी सारे अत्याचारी !!

जग उठो चलो ओ री नारी !!३!!


    
 

‘निर्वेद-जननि’हो ‘शान्ति तुम्हीं |

‘उत्साह-जननि’हो ‘क्रान्ति’ तुम्हीं ||

‘विप्लव-जननी’हो ‘क्लान्ति’ तुम्हीं |

‘माया’ तुम ही हो ‘भ्रान्ति’ तुम्हीं ||

तुम’बोध-जननि’हो और ‘बुद्धि’ |

‘शुचिता’तुम ही,हो तुम्ही,’शुद्धि’ ||

‘भोगों’ में देखो, ’तृप्ति’ तुम्हीं |

‘तेजों’ में ‘कान्ति’,’दीप्ति’ तुम्हीं |

‘मेघों’ में तुम्हीं ‘दामिनी’ हो |

‘संगीत’ में तुम्हीं ‘रागिनी’ हो ||

‘छंदों’ में ‘गति-यति’बन उतरो !

गूँजे ‘तुम’से दुनियाँ सारी ||

जग उठो चलो ओ री नारी !!४!!

  
      

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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