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बुधवार, 28 नवंबर 2012

गंगा-स्नान





आज का पावन पर्व बहुत महत्वपूर्ण है भारतीय संस्कृति के लिये | अनेक पौराणिक मान्यतायें  इस पर्व से ऐसी जुड़ी हैं जो 'सामाजिक  संक्रान्ति', 'सकारात्मक परिवर्तन' एवं 'शान्ति-स्थापना' से सम्बन्ध रखतीं हैं | 
इसी दिन  देवाधिदेव महादेव भोले शंकर ने त्रिपुरासुर का वध किया था अर्थात 'पैशाचिक अलगाववाद' का अंत किया था |  तारकासुर  दैत्य के तीनो पुत्र-ताराक्ष,कमलाक्ष और विद्युन्माली  नाम के त्रिपुरासुर नाम से जाने जाते हैं | ये तीनों अलगाव वादी विभाजन वादी,धूर्त ही नहीं अपितु अति भोगी विलासी और अत्याचारी एवं कुटिल भी थे | इन तीनों ने क्रमश:स्वर्णपुर, राजतपुर और लौहपुर नाम के लोक बसा कर अलग रहते थे, बिलकुल आज के 'अंडरवर्ल्ड' अपराधियों की भाँति छुप कर अपराध करने  के आदी थे | तीनों के नाम यह स्पष्ट कटे हैं कि तीनो ही आकर्षक, सुदर्शन एवं सुरूप्वान थे किन्तु घातक अपराधी थे | समाज रूपी शिव आज  इन अलगाव वादियों का नाश करे तो गंगास्नान सार्थक है |
                  इसी दिन पाण्डव-अग्रज युधिश्ठिर ने कार्त्तिक शुक्ल अष्टमी से चतुर्दशी तक गंगा-स्नान किया तथा गंगा-तट पर यज्ञ भी किया तथा रात्रि में सारी मृत आत्माओं की शान्ति हेतु 'दीप-दान' किया | इस प्रकार 
गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ की स्थापना हुई |
          यह मास शिवा,सम्भूति,संतति,प्रीति,अनुसूया और क्षमा नाम की छ: कृत्तिकाओं का मास है | ये छहों क्रमश: 'कल्याणकारी शक्ति', 'निर्माणकारी शक्ति', 'श्रेष्ठ उत्तराधिकारी उपलब्धि', 'प्रेम-शक्ति','सत्य-निष्ठा' तथा क्षमा शक्ति'  की प्रतीक हैं और समाज की सुधार हेतुं आवश्यक हैं और 'समाज-सुधार' की संकल्प दायिनी हैं |
            'सर्व धर्म समन्वय वादी',अति उदारता के अवतार समाज सुधारक निर्लोभी, सन्मार्ग गामी और 
पूर्णसात्विक ज्ञान मार्गी सन्त 'गुरु नानक देव' का जन्म- दिन भी आज के दिन ही हुआ था |
    वर्ष भर के दूषित विचारों के मल से मन को शुद्ध कर के नवीन शुद्ध विचारों को स्थापित करें अर्थात मन का स्नान करें तो कैसा रहे 'गंगा-स्नान' का यह पावन पर्व ?   
गंगा का अर्थ है-'निरन्तर गतिशील ऊर्जा' | किसी भी नदी को गंगा कहा जा सकता है | किसी भी 'प्रदूषण-रहित नदी' में स्नान सार्थक हो सकता हैं | हाँ, 'भागीरथी गंगा, में स्नान, एक 'दृढ़ इच्छा-शक्ति' का विकास और उस का नवीनीकरण में विशेष सहयोगिनी हैं | स्व-स्नान 
के साथ 'नदी' को  भी तो स्नान करवायें |यानी नदियों को 'प्रदूषणों के मल' से मुक्ति  दिलायें | हर नदी एक देवी है | क्या 'नदी रूपी  देवी' का 'स्नान', 'देश रूपी मन्दिर' में 
समुचित नहीं है ?
       आज 'गंगा-स्नान' का यह पर्व हम नई सोच,'नयी विचार-धारा' एवं प्रगतिवादी सुधारवादी आडम्बर विहीन और पाखण्ड रहित दृष्टिकोण अपना कर मनायें !!    

        
   

गंगा-स्नान/नानक-जयन्ती (कार्त्तिक-पूर्णिमा) (१) प्रदूषित प्रेम-गंगा


मेरे एक 'समस्या-प्रधान' काव्य- 'प्रश्न-जाल' से उद्धृत  
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किस तरह इस में नहायें ?
‘प्यास’ हम कैसे बुझायें ??
????????????????????
वासना के कलुष नालों से प्रदूषित प्रेम-गंगा |
कौन अब इसमें नहा कर रह सकेगा भला चंगा ??
‘स्वच्छ तन’ कैसे बनायें ?
‘स्वच्छ मन’ कैसे बनायें ??
किस तरह इस में नहायें ?
‘प्यास’ हम कैसे बुझायें ??१??
 
यह ‘मशीनी जिन्दगी’ है, ‘मनुजता’ प्रर ‘दाग’ जैसी |
‘प्यार की कोमल कली’ को, झुलस देती, आग जैसी ||
ठग रहीं ‘गन्धित हवायें |
कौन इन से ‘महक’ पाये ??
किस तरह इस में नहायें ?
‘प्यास’ हम कैसे बुझायें ??२??
 
चमकते हैं, दमकते हैं, ‘काँच से कच्चे इरादे’ |
‘रेत’ के महलों’ सरीखे, ढह रहे हैं कई ‘वादे’ ||
अब कहाँ हम सर छुपायें ?
और किसकी ‘शरण’ जायें ??
किस तरह इस में नहायें ?
‘प्यास’ हम कैसे बुझायें ??३??

कौन किस का ‘मीत’, किस का कौन ‘अपना’ ?
देखता है हर मनुज, ‘धन का ही सपना’ ??
किसे ‘सीने’ से लगायें ?
‘प्यार’ हम किस को जतायें ??
 किस तरह इस में नहायें ?
‘प्यास’ हम कैसे बुझायें ??४??
???????????????????????

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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