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सोमवार, 12 नवंबर 2012

दीपावली की रचनाएँ (४ )'नर्क-चतुर्दशी' -एक विचार



आज 'दीपावली की पूर्व-रात्रि' अर्थात 'छोटी दीपावली की रात' है | इस पर्व  को, 'नर्क-चतुर्दशी','रूप-चतुर्दशी',वैकुंठ-चतुर्दशी', 'हरि-हर मिलन' और -
'हनुमत-जयन्ती' आदि विभिन्न नामों से जाना जाता है| इन नामों से जुड़ी  पौराणिक कथायें प्रचिलित हैं |
            
             इसी दिन महा पुरुष भगवान श्री कृष्ण ने वासना-लोलुप, दुराचारी दैत्य नर्कासुर का वध किया था , जिसने सोलह हज़ार एक सौ कन्याओं को वन्दी बना कर रक्खा था | श्री कृष्ण ने उन कन्याओं को वन्दी-गृह से मुक्त  किया और उस दुष्ट दैत्य का वध किया | यह कथा यह नसीहत देती है कि,वासना के  'अनियंत्रित' प्रवेग से समाज को मुक्त करने का प्रयास करना चाहिये | यह 'अनियंत्रित वासना' का प्रवेग दानव प्रवृत्ति है और ,दानव-समाज' का निर्माण करती है |
          'हरि-हर मिलन' की कथा भगवान शिव और भवान विष्णु के मिलन या समन्वय को प्रदर्शित करती है | शैव और वैष्णव समुदायों का यह समन्वय, प्राचीन काल के दक्षिण, सुदूर उत्तर और मध्य भारत की एकता का प्रतीक है | 'प्रान्त-वाद' के विघटन कारियों को तो  इस पर्व से सबक लेना ही चाहिये | हनुमान जयन्ती भी शिव के एक अवतार-'हनुमान' द्वारा विष्णु-अवतार श्री राम की भक्ति इसी मन्तव्य को स्पष्ट करता है-'शैव-वैष्णव' सम्प्रदाय का संगठन |
               
            'वैकुंठ-चतुर्दशी' के रूप में यह पर्व  यह बताता है कि, सभी 'नारकीय कुकर्मों' से समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण विश्व को मुक्ति दिला कर,
स्वर्गिक क्रिया कलापों को प्रोत्साहन दें | 'मलिनता' , 'प्रदूषण,'  'भ्रष्टाचार',
'बेईमानी', 'जमाखोरी', , 'गरीबी'  'कलह', 'हिंसा'   और 'देश-द्रोह', के साथ 
'जाति वाद', 'क्षेत्रवाद','धर्म-विवाद' आदि सब सामाजिक बुराइयाँ वास्तव में, 'नर्क' का ही कारण हैं और ये सब 'सामाजिक-जीवन' को नर्क बना देती हैं | इन्हें मिटा कर धरती को स्वर्ग बनायें | तभी इस पर्व की सार्थकता है |
           'रूप-चतुर्दशी' का अर्थ है कि,सभी प्रकार की 'कुरूपताओं' को हम 
'सुरूपता' में बदलें | आज 'विकृत मानसिकता' के युग में तो यह पर्व बहुत महत्वपूर्ण है | सुधार इस पर्व का एक मात्र उद्देश्य होना चाहिये | 
        
         'नियम', और  'संयम' का विधिवत पालन कर के जीवन-मृत्यु के संचालक  'यम'  को प्रसन्न कर के,लोकोपयोगी बनाये रक्खें |  

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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