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शनिवार, 15 दिसंबर 2012

मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य) (ट)विराग- गीत | (१)किससे करें मिताई ! (एक आइना)


प्रसाद गुणीय-शान्त रसीय गीत (सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार )

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‘सांसारिक हर बन्धन’ झूठा |
‘स्नेह का हर इक नाता’ टूटा ||
रह गयी, ‘वित्त-कमाई’ |
किससे करें मिताई !!१!!

‘वाणी’ में, ‘छलमयी मधुरता’ |
और न ‘छलिया चित्त’ सुधरता ||
‘ज़िन्दगानी’ यों बितायी |
किससे करें मिताई !!२!!


स्वार्थ’ साधने की है ‘पटुता’ |
‘व्यवहारों’ में है ‘कपट की कटुता’ ||
‘मन’ मेरा ‘हरजाई’ |
किससे करें मिताई !!३!!

‘देश-धरा’ को धरा ‘ताक़’ में |
हर कोई है ‘अपनी ताक’ में ||
ऐसी ‘नीति’ चलाई |
किससे करें मिताई !!४!!

 
‘जग’, ‘सोने चाँदी का पिन्जरा’ |
‘प्रीति का पन्छी’ इसमें है घिरा ||
अब तक ‘मुक्ति’ न पाई |
किससे करें मिताई !!५!!


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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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