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शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

याद


मित्रों,आज 'अति व्यस्तता  से,  'जाल में फँसे मुक्त हिरण'  की भाँति कुछ पल चुरा कर,  'स्वर्ग वासी हास्य-

वीर' जसपाल भट्टी की याद तारो ताज़ा कर रहा हूँ | पारिवारिक बेडियाँ जकड़े थीं, फिर  जकड़ लेंगीं | यह भी एक 

एक अनिवार्य मधुर पीड़ा है | 'प्यारा बन्धन' है | भट्टी जी की याद में यह छोटी सी 'पुष्पान्जलि'--  

(चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 
   


खुशी बाँटने वालों की याद |
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खुद के ग़मों के दौर में जो सब को हँसाते हैं |
गोया, ‘किसी दोज़ख’ में, ‘एक जन्नत’ बसाते हैं ||

‘ऐसे धीर वीर’, हमें, हमेशा याद आते हैं |
यों तो अनगिनत लोग ‘जहाँ’ में आते जाते हैं ||

‘वीरानगी‘ में वे,’प्यार की बाँसुरी’ बजाते हैं |
या कि, ‘उजड़े चमन’ में,महके हुये गुल सजाते हैं ||

‘मन की कुण्ठाओं’ को ‘प्यार’ से गुदगुदाते हैं |
या फिर ‘तपी दोपहरी’ में, ‘बादल’ बरसाते हैं ||

‘रेगिस्तान’ में ‘हँसते “प्रसून”’ कुछ खिलाते हैं |
‘रीती-मन-गागरों’ में, ‘प्रेम-रस’ भर जाते हैं ||


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गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

राम हमारी दुनियाँ में (मेरी पुस्तक ‘प्रश्न-जाल’ से)

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          राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम’ कितने ‘रावण’ मारोगे ?
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दानवता की चोट’ से पीड़ित, ‘मानवता’ तो रोई है |

  ‘कुम्भकर्ण की नींद’ मिल गयी,’जागृति’ चैन से सोई है ||
          ‘आराजकता’ की ‘गति’ को है, ‘गहरी नींद’ में सुला दिया-
       इसे जगाने के प्रयास में,भगवन, तुम भी हारोगे ||
          राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम, कितने ‘रावण’ मारोगे ??१??

 औ र ‘चेतना’, ‘नशे’ में डूबी, ’मद-आलस’ में, ‘होश’ नहीं |
‘उचित’ और ‘अनुचित’ पहँचाने, ऐसा इसमें ‘जोश’ नहीं ||
‘बुद्धि’ में बैठा ‘कालनेमि’ है,बड़ा ‘स्वेच्छाचारी’ है-
‘व्यवस्थाओं के केश’ हैं उलझे, कैसे इन्हें सँवारोगे ??
राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम कितने ‘रावण’ मारोगे ??२??

‘पाप’ की ‘कालिख’ पुती हुई अब, ‘पुण्य’ की ‘हर तस्वीर’ में है |
देखो कितनी ‘दलदल’ पनपी,’सरयू-गंगा-नीर’ में है ||
‘प्रदूषणों की लीला’ ऐसी, इस ‘अमृत’ में ‘विष ही विष’-
सब के सब ‘कीचड़’ में डूबे, किसको किसको तारोगे ??
       राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम कितने ‘रावण’ मारोगे ??३??


   राम! तुम्हारी ‘इस धरती’ में, आज ‘किस गली’ ‘धर्म’ बचा ?
   देखो तो’, ‘युग-परिवर्तन’ ने, ‘अवध’ में ‘वध’ का खेल रचा ||
  ‘धूर्त-नीति’ के दानव-कुल’ ने, इस को ‘लंका’ बना दिया –
  मुझे बताओ,कब आ कर के,’धर्म की धरा’ सुधारोगे ??
  राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम कितने ‘रावण’ मारोगे ??४??

‘भक्ति-भाव’ में ‘झूठ के दाग’ हैं,’ध्यान’ में ‘लोभ का भार’ भरा |
 ‘हर मन के आँगन’ में कितनी, ‘मैल’ का है ‘अम्बार’ भरा ||
 ‘निष्ठा की कूचियाँ’ हैं टूटी, ‘आस्थायें’ सब ‘दुर्बल’ हैं-
 ‘आँगन-आँगन’ ‘दम्भ के काँटे’, कैसे ‘मैल’ बुहारोगे ??
  राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम कितने ‘रावण’ मारोगे ??५??

  ‘प्रेम-प्रसून’ में ‘गन्ध’ नहीं है, चढ़े ‘तुम्हारे चरण’ में जो |
  ‘पुजारियों’ में ‘लोभ’ है व्यापा, आये ‘तुम्हारी शरण’ में जो ||
  ‘मन-मन्दिर’ में ‘गर्त पतन के’, इन में गिरे ये औंधे मुहँ-
   बड़ा कठिन है इन्हें बचाना, कैसे इन्हें उबारोगे ??
   राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम कितने ‘रावण’ मारोगे ??६??

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मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

मेरी पुस्तक- 'शंख-नाद' से - !जय बोलो श्री राम की!(अर्द्ध हास्य')



  • !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
  •      
  •    !जय बोलो श्री राम की
  •         
  •    जय बोलो श्री राम की!           
  •                  
  •   !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
  •         
  •      ‘माल मुफ्त का’ खाने वाला |
  •       
  •  ‘थुल थुल पेट’लिये है‘लाला’ ||

  • ‘पूजा-घर’ में फेर रहा है-
  •   
  •      लिये हाथ में‘तस्वीह-माला’ ||
  •    
  •    ‘ध्यान’में‘ग्राहक’,’मन’में‘ दौलत’-

  •    चिन्ता लगी है ‘दाम’ की |

  • जय बोलो श्री राम की !
  •       
  •   जय बोलो श्री राम की !!१!!

  •  

  •     ‘उजले-उजले कपड़े’ पहने |
  •       
  • गले में ‘मणि-मोती के गहने’ ||
  •  
  •      ‘नीयत’ में है ‘खोटा सिक्का’-

  •      ‘सम्बोधन’ में ‘माता-बहनें’ ||

  •      ‘लम्बा प्रवचन’,‘उपदेशी’ का-

  •    ‘धूम मची है’ ‘नाम’ की ||   

  • जय बोलो श्री राम की !

  •       जय बोलो श्री राम की !!२!!


  •  
  • ‘पीली,लाल,सफ़ेद टोपियाँ’ |
  •        बने ‘कन्हैया’, साथ ‘गोपियाँ’ ||
  •        ‘मोती’ स्वयं ‘टटोल’ भर लिये-
  •    बाँट के सब को,’रिक्त सीपियाँ’ ||
  •          ‘पेट’ बड़ा है,’जोंक’ सा ‘मोटा’-
  •  खाते रोज ‘हराम की’ ||
  •    जय बोलो श्री राम की !
  •         जय बोलो श्री राम की !!३!!

  •    
  •    हर दिन ‘मारामारी’ करते |
  •   ‘नेताओं’ से ‘यारी’ करते ||
  •    चबा के ‘बीड़ा’,’खूनी कत्था’-
  •    ‘मोटी’,’हज़म सुपारी करते’ ||
  •    ‘मालिक’ के ‘दुम छल्ले कुत्ते’-
  •    ‘निभा के’,’रीति गुलाम की’ ||
  • जय बोलो श्री राम की !
  •   जय बोलो श्री राम की !!४!!

  •   
  •  
  •    दफ्तर में शतरंज खेलते |
  •    
  • ‘बॉस’की‘झिड़की’ रोज़ झेलते ||
  •  
  •   ‘भारी जेब’ ले घर में आ कर-
  •  
  • ‘लगा के मक्खन’,‘दण्ड पेलते’ ||
  •  
  •    मुफ़्त में ‘मेहनताना’ मिलता-

  •    इन्हें पड़ी क्या काम की !!

  •  जय बोलो श्री राम की !

  •     जय बोलो श्री राम की !!५!!
  •  
  •   
  •  ‘छू कर पाँव’, ‘गये जो मांगे’ | 

  •      दीवारों पर ‘सनदें’ टाँगे ||
  •  
  •     ‘बड़ा सिलसिला’,’सोर्स लंबा’-

  •     क्या है कमी ‘इनाम’ की !!

  •   जय बोलो श्री राम की !

  •     जय बोलो श्री राम की !!६!!
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सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

देख (एक हकीकत) मेरी पुस्तक -'गवाक्ष' से एक 'व्याजोक्ति'



००००००००००००००००००००


अजब 'राम की लीला' देख !   


नाटक 'बड़ा रसीला' देख !!     


'देवताओं के वश' में आया -    


है 'दैत्यों का कबीला' देख !! 


अजब 'राम की लीला' देख !!      


०००००००००००००००००००० 



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'राम' के वेश में 'रावन' है |


'आग' छिपाये 'सावन' है ||


धोखे से वह गयी छली |


तडफ रही जैसे मछली ||


तार तार हुआ दामन है |


बुझा हुआ इसका मन है ||


'सिया' के 'बेबस आँसू' से - 


उसका 'आँचल' गीला देख !!


अजब 'राम की लीला' देख !!१!!



यह 'चोरों की कचहरी' है |


गाँव की, है- न शहरी है ||


भीड़ है बड़ी काजियों की |

धन से बिके पाजियों की ||


न्याय की देवी बहरी है || 


बेडी पहन के ठहरी है ||


'कुम्भकर्ण की नींद' में डूबा -


'न्याय-तंत्र' है ढीला देख !!



अजब 'राम की लीला' देख !!२!!



रसोई है कंगालों की |  ||


भूखे प्यासे लालों की ||


पीड़ा इनकी कौन सुने-


सुन कर सिर क्यों, कौन धुनें ??


'बुझते हुए  उजालों' की |


'टूटी हिम्मत वालों' की- 


दाल न पकी बुझ गया चूल्हा-


फूटा हुआ पतीला देख !!


अजब 'राम की लीला' देख !!३!!


'वर्त्तमान' की बातें  कर !


'प्यार भरी दिन रातें', कर !!


'बीती बात' विसार के चल !


मत लड़ने  के लिये मचल !!


'साबुत', 'टूटे नाते' कर !


मत 'घातें- प्रतिघातें' कर !!


गड़े हुए शब यहाँ कई-


बस कर खोद न टीला देख !!


अजब 'राम की लीला' देख !!४!!



छलिया 'कपटी बाबा' है |


खाता 'मक्खन -मावा' है ||


पहले रसीद कटवा ले- 



फिर चाहे जितना खा ले ||


'भण्डारा' क्या 'ढाबा' है |


अच्छा भला छलावा है ||


दुराचार छिप गये आड़ में -


चोला काला पीला देख !!


अजब 'राम की लीला' देख !!५!!




बिकनी में यों नारी है |



'बाड़ बिना ज्यों क्यारी' है ||


हलवा या कि मलीदा है |


देकर नोट खरीदा है ||


'रूप' का यह 'व्यापारी' है |


'खुल कर', 'लाज उतारी' है ||


'मुन्नी' को बदनाम कर दिया -


'शील' बेचती 'शीला' देख !!



अजब 'राम की लीला' देख !!६!!


 



प्यार से या मक्कारी से |


या फिर मारामारी से ||



'अपराधों का फरिश्ता' है |  


'जेल' से उसका 'रिश्ता' है ||


काम नहीं कुछ 'यारी' से |


ऐंठा है दमदारी से ||


"प्रसून"कल का गुण्डा बन गया -



नेता छैल छबीला देख !!


अजब 'राम की लीला' देख !!७!!



            

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