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गुरुवार, 6 सितंबर 2012

ज्वालामुखी (एक गरम जोश काव्य) (क)वन्दना) -(३)गुरु वन्दना (हे गुरु जागो !!)


सभी सुधी पाठकों,सह लेखकों एवंप्रेरणाप्रद वरिष्ट साहित्यकारों की सेवा में पूर्ण स्वान्तः सुखाय काव्य 'ज्वाला-मुखी'के अपने क्रम में आज 'गुरु-वन्दना 'प्रस्तुत है,जो कि कल, दो रचनाये,पहले से ही काशित किये जाने के कारण नहीं प्रकाशित नहीं कीं गयीं |सो,कल के शिक्षक दिवस में सह्भागितासे वंचित रह जाने का मुझे खेद है !!

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(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से उद्धृत)

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    (३)



 गुरु-वन्दना



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(हे गुरु जागो)

  

हे सोये गुरु जागो जागो,

‘ज्ञान-दीप’-उजियार करो

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बन कर वशिष्ठ आओ जग में,सोये ‘राम’ जगाओ तो !

‘सान्दीपन’ ‘कृष्ण कन्हैया’ को सत्पन्थ दिखाओ तो !!

‘राष्ट्र-द्रोह काविप्लव’ देखो,धीरे धीरे पनप रहा !

हे गुरु बन् कर ‘रामदास’ तुम,वीर शिवा तैयार करो !

हे सोये गुरु,जागो जागो, ‘ज्ञान-दीप'-उजियार करो !!१!!

     


चारों और अकाट्य लग रहा,’कलि-मल’ का है तामस घेरा !

अपारदर्शी,काला, गँदला जिसने है सारा जग घेरा !!

‘पिशाच-दल’ के हाथों मानो,’अन्धकार-घट’ लुढ़क रहा -  

‘बोध-ज्योति की प्रतिभा-आभा-असि’से इस पर वार करो !!   

हे सोये गुरु,जागो जागो, ‘ज्ञान-दीप'-उजियार करो !!२!!



फिर से ‘नरहरि’ बन् कर आओ,’तुलसी’ को फिर चेताओ !

‘मर्यादा की टूटी माला’ जोड़ जगत को पहनाओ !!

मोह के हाथों ‘चित्र ज्ञान का,’अन्त:-पट’ पर है मिट रहा |

मन में मेल अबोद्ज तत्व की,इसका शीघ्र निखार करो !

हे सोये गुरु,जागो जागो, ‘ज्ञान-दीप उजियार करो !!३!!


   

   


‘घृणा,वैर,लालच का लावा’,हर दिल ‘ज्वालामुखी’बना |

इसे शान्त कर,करो शिवो मय, ’त्याग-प्रेम का मन्त्र’ सुना ||

‘विडम्बना के घन’ छाये,हैं,’अकल्याण-रस’ बरस रहा |

बनो पुरो-हित,’मानवता’ के,’हित-जल’ की बौछार करो !

हे सोये गुरु,जागो जागो, ‘ज्ञान-दीप'-उजियार करो !!४!!

 


  

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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