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शनिवार, 28 दिसंबर 2013

नयी करवट(दोहा-गीतों पर एक काव्य)(६)ढोल की पोल (घ)अधर्म-अफ़ीम

(सारे चिर्त्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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आये हैं ‘शैतान’ कुछ, बन कर ‘राम-रहीम’ |

लगे हैं ‘बैनर’ धर्म के, बाँटें ‘अधर्म-थीम’ ||

अब ‘द्रौपदियाँ’ क्या करें, कहाँ बचेगी ‘लाज’ |

जब ‘दुश्शासन’ घूमता, कहता खुद को ‘भीम’ ||



हलवाई ‘अज्ञान’ के, रचें ‘ज्ञान-मिष्ठान’ |

रच कर ‘पेड़ा’ बेचते, भीतर भरे ‘अफ़ीम’ ||



‘कड़वाहट’ हैं भर रहे, ये ‘प्रवचन के सिद्ध’ |

‘वाणी’ में ‘मिसरी’ घुली, ‘व्यवहारों में ‘नीम’ || 

‘तोते’ कुछ ‘पाखण्ड’ के, रटते ‘पाप-कुमन्त्र’ |

‘कुतर्क’ कितने कर रहे, झूठी हर ‘तरमीम’ ||



इनके ‘झाँसे’ में फँसे, भोले कई “प्रसून” |

समाज भटका ‘भ्रष्ट पथ’, पनपे ‘पाप’ असीम ||



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 मेरे ब्लॉग 'प्रसून' पर, 'घनाक्षरी वाटिका' के षष्ठम् कुञ्ज(मिलन-पथ) में आप का स्वागत है |

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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