(सारे चिर्त्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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आये हैं ‘शैतान’ कुछ, बन कर ‘राम-रहीम’ |
लगे हैं ‘बैनर’ धर्म के, बाँटें ‘अधर्म-थीम’ ||
अब ‘द्रौपदियाँ’ क्या करें, कहाँ बचेगी ‘लाज’ |
जब ‘दुश्शासन’ घूमता, कहता खुद को ‘भीम’ ||
हलवाई ‘अज्ञान’ के, रचें ‘ज्ञान-मिष्ठान’ |
रच कर ‘पेड़ा’ बेचते, भीतर भरे ‘अफ़ीम’ ||
‘कड़वाहट’ हैं भर रहे, ये ‘प्रवचन के सिद्ध’ |
‘वाणी’ में ‘मिसरी’ घुली, ‘व्यवहारों में ‘नीम’ ||
‘तोते’ कुछ ‘पाखण्ड’ के, रटते ‘पाप-कुमन्त्र’ |
‘कुतर्क’ कितने कर रहे, झूठी हर ‘तरमीम’ ||
इनके ‘झाँसे’ में फँसे, भोले कई “प्रसून” |
समाज भटका ‘भ्रष्ट पथ’, पनपे ‘पाप’ असीम ||
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