(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
(ब्याजोक्ति-प्रधान रचना)
(ब्याजोक्ति-प्रधान रचना)
सन्त निकोलस की तरह, त्यागी हों ‘अलमस्त’ |
तो. दुनियाँ में कहीं फिर. रहे न कोई त्रस्त ||
‘अपनेपन’ का सभी से, जो रक्खे ‘व्यवहार’ |
‘प्रेम’ बढ़े संसार में, ‘नफ़रत’ होगी ध्वस्त ||
‘आस्था’ और ‘उदारता’, हैं ईश्वर के रूप |
‘समानता’ हो हर तरफ़, ‘भेद-भाव हों नष्ट ||
अन्न बढ़े हर देश
में, करे पलायन ‘भूख’ |
भरें पेट भूखे सदा, रहें सदा आश्वस्त ||
‘लामकान’ पायें सभी, अब समुचित आवास |
सारी दुनियाँ की दशा, हर दिन रहे दुरुस्त ||
“प्रसून” अब हर ‘बाग’ में, खिलें, लुटाएं ‘हास’ |
‘पतझर’ उस से दूर हो, ‘बसन्त’ हो मत रुष्ट ||
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मेरे ब्लॉग 'प्रसून' पर 'ख्रीस्त-दिवस' पर आप का स्वागत है !