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मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

क्रिसमस-दिवस(शान्त रस -अभिधा शब्द-शक्ति में गंगाजमुनी भाषा में भावोद्गार)

(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 
    (ब्याजोक्ति-प्रधान रचना) 

  
सन्त निकोलस की तरह, त्यागी हों ‘अलमस्त’ |

तो. दुनियाँ में कहीं फिर. रहे न कोई त्रस्त ||
‘अपनेपन’ का सभी से, जो रक्खे ‘व्यवहार’ |

‘प्रेम’ बढ़े संसार में, ‘नफ़रत’ होगी ध्वस्त ||
‘आस्था’ और ‘उदारता’, हैं ईश्वर के रूप |

‘समानता’ हो हर तरफ़, ‘भेद-भाव हों नष्ट ||

अन्न बढ़े हर देश में, करे पलायन ‘भूख’ |

भरें पेट भूखे सदा, रहें सदा आश्वस्त ||

‘लामकान’ पायें सभी, अब समुचित आवास |

सारी दुनियाँ की दशा, हर दिन रहे दुरुस्त ||
“प्रसून” अब हर ‘बाग’ में, खिलें, लुटाएं ‘हास’ |

‘पतझर’ उस से दूर हो, ‘बसन्त’ हो मत रुष्ट ||
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मेरे ब्लॉग 'प्रसून' पर 'ख्रीस्त-दिवस'   पर आप का स्वागत है !    

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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