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बुधवार, 26 मार्च 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (2) सरस्वती-वन्दना (ख)रस-याचना | (iii)’वीर-भयानक-रौद्र’ रस |

इस ग्रन्थ में  ईश्वर और सरस्वती से  उनके विभिन्न गुणों के आधार पर निवेदन की अलग अलग रचनायें हैं ! इसी क्रम में सरस्वती माँ से यह याचना की गयी है कि कौन से रस में क्या लक्षण हों जों शिवो मायता की और अग्रेसर हों सकें हम !
(सारे चित्र ''गूगल-खोज' से साभार) 


जिस को पढ़ कर सभी में, ‘उत्तम’ जगें ‘विचार’ |

माता ! मेरे ‘काव्य’ में, ऐसा करो ‘सुधार’ !!

‘कविता’ में ‘उत्साह’ की, भर दो ऐसी ‘शक्ति’ !

जिसको सुनकर हृदय में, जागे ‘राष्ट्र-भक्ति’ !!

‘दान-वीर’, ‘परमार्थी’, ‘धर्मवीर’-‘रण-धीर’ |

‘सत्साहस’, ‘संकल्प’ दृढ़, लेकर लड़ें ‘सुवीर’ ||

‘दुस्साहस’ करके न कुछ, हों ‘सीमा’ से पार |

माता ! मेरे ‘काव्य’ में, ऐसा करो ‘सुधार’ !!१!!


सुनें ‘वीर-रस-काव्य’ को, उन का जागे ‘सत्त्व’ |

जन-हित अर्पित करें वे, अपना हर ‘बल-स्वत्व’ ||

अब ‘कविता’ का ‘रौद्र-रस’, ‘शिव’ सा हो हे अम्ब !

‘मन’ का हरे ‘विकार’ बन, ‘मानवता-स्तम्भ’ !!

इसके ‘सफल प्रभाव’ से, रहे न ‘विषम विकार’ !

माता ! मेरे ‘काव्य’ में, ऐसा करो ‘सुधार’ !!२!!

और ‘भयानक-रस’ बने, ‘शोधक’ औ ‘सत्-रूप’ !

करे उजागर जो सदा, ‘कुवृत्तियों’ का रूप !!

‘पाप’ और ‘दुष्कर्म’ की, ‘रौद्र-भयानक-वृत्ति’ |


‘दुष्ट’ डरें, डर कर सदा, ‘स्वच्छ’ रखें ‘निज चित्त’ !!

‘द्वन्द-कलह-विद्रूप’ का, अनुचित हो न ‘प्रसार’ !

माता ! मेरे ‘काव्य’ में, ऐसा करो ‘सुधार’ !!३!!






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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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