(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
नशा, व्यसन के हैं कई, कामी जन बीमार !
छल के फन्दे में फँसा, है आधा संसार !!
लोलुप-लम्पट काम-पशु, उच्छ्रंखल ‘दनु-पुत्र |
जैसे होने लगे अब, मनु के कई ‘कुपुत्र ||
इंसानी तहज़ीब यों, कर के मटियामेट !
भोली-भाली नारियों, का करते आखेट !!
कुचल शील को कुटिलता, का कर कुशल प्रहार !
छल के फन्दे में फँसा, है आधा संसार !!1!!
डाल वासना-डोर को, रहे रूप-तन फाँस !
कुछ उलूक-सूत जो सदा, केवल धन के दास !!
कोमलता की लता पर, काम की पड़ी चपेट !
बेच लाज की पंखुड़ी, कलियाँ भरतीं पेट
!!
पिता नशेड़ी-जुवारी, पड़ी भूख की मार !
छल के फन्दे में फँसा, है आधा संसार !!2!!
‘मज़बूरी को भाँप कर, कई वासना-व्याध !
भूख मिटा कर पेट की, पूरी करते साध !!
कुछ नर छिन्नर कर्म के, करके कई कमाल !
रूप परिन्दे फाँसते, धन का दाना डाल !!
रस पी प्याली फ़ेंकते, ठगते हैं श्रृंगार !
छल के फन्दे में फँसा, है आधा संसार !!3!!
सुंदर !
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