Blogger द्वारा संचालित.

Followers

शनिवार, 8 नवंबर 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (iv) यौवन-विक्रय |

     (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार)
अति आधुनिक समाज है, इतना हुआ सुधार !
देखो  यौवन बेचता, है आधा संसार !!
शराब-खाने, जुवा-घर, में मर्यादा नग्न !
सुरा पिलाती, रूप-रस, से कर सब को मग्न !!
काल-गर्ल का नाम धर, होती वेश्या-वृत्ति !
धन की भूखी  सुन्दरी, जहाँ कमाती वित्त !!
और इस तरह हो रहा, है तन का व्यापार !
देखो  यौवन बेचता, है आधा संसार !!1!!
अड्डे दादा-भाइयों, के हैं कई बहाल !
जहाँ रूप-बाज़ार के, होते कई दलाल !!
लाते कई किशोरियाँ, को भटका कर नीच !
करते कलुषित लाज को, पाप-नीर से सींच !!
बना वेश्या सबल पशु, करके बलात्कार !
देखो  यौवन बेचता, है आधा संसार !!2!!
बेबस कई किशोरियाँ, पाने को व्यवसाय !
फँसतीं इन के जाल में, हो जाये कुछ आय ||
बना इन्हें  स्मैकिया, हैरोइन का दास !
पापी इन को फाँस कर, रखते अपने पास !!
दिखा-दिखा भय मृत्यु का, करते अत्याचार !!
देखो यौवन बेचता, है आधा संसार !!3!!


About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

मेरे सभी ब्लोग्ज-

प्रसून

साहित्य प्रसून

गज़ल कुञ्ज

ज्वालामुखी

जलजला


  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP