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रविवार, 11 नवंबर 2012

दीपावली की रचनाएँ (३) नर्क-चतुर्दशी (एक व्याजोक्ति)



 
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‘छोटी दीवाली के दीपक’, आओ चलो पजारें !
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‘नर्क-चतुर्दशी’ कहते हैं’ इसको सारे लोग |

‘दीवाली’ के पूर्व ‘पर्व यह’, है ‘सुख का संयोग’ ||

करें ‘सफाई और सजावट’, घर के सारे लोग |

‘मन’ में उपजें ‘भाव शिवोमय’, रहें सभी ‘नीरोग’ ||

तभी ‘देवता मृत्यु के’ यम’ ‘दुःख-पंक’ से पार उतारें ||

‘छोटी दीवाली के दीपक’, आओ चलो पजारें !!१!!


ढूँढ़ें कोई ‘रंक-देवता’, उसको दें ‘कुछ भेंट’ |

कोई ‘विवश भूख से पीड़ित’, उस का भर दें ‘पेट’ ||

‘कुछ’ बाँटें, ‘जो’ धरा है हमने ‘दोनों हाथ’ समेट | 

‘दान-यज्ञ’ का ‘पुण्य’ बटोरें, ‘युग के सारे सेठ’ ||

‘निर्धनता की दलदल’ से हम ‘डूबे हुये’ उबारें !!

‘छोटी दीवाली के दीपक’, आओ चलो पजारें !!२!!


 


अरे, ’गरीबी’ से बढ़ कर के, नहीं है ‘कोई नर्क’ |

‘सामूहिक दुःख’ का कारण है,बस ‘आपस का फर्क’ ||

‘भूख’ से दब जाते हैं देखो, ‘ज्ञान के सारे तर्क’ |      

‘बेकारों’ को ‘काम’ बाँट दो भूल के ‘तर्क-वितर्क’ ||

और इस तरह ‘भाषण-बाजी’, छोड़ के देश सुधारें | 

‘छोटी दीवाली के दीपक’, आओ चलो पजारें !!३!!


‘समाज रूपी देव’ को परसें, ‘मीठा मीठा प्यार’ |

मिल जुल कर हम रहें, करें मत  व्यर्थ ‘कोई तक़रार’ ||

“प्रसून”, ’भेद की खाई’ पाटें,मन में हो न ‘दरार’ |

‘आपस में’ लड़वाने वाली, टूटे ‘हर दीवार’ ||

‘व्यवहारों की पाती’ पर हम, ‘प्रेम के चित्र’ उतारें ||

‘छोटी दीवाली के दीपक’, आओ चलो पजारें !!४!!


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दीपावली की रचानाएं(२) धन तेरस की वधाई(एक गवेषणा-व्याजोक्ति)

सभी मित्रों से मुझे यह कहना है कि,सभी पर्व प्रतीकात्मक होते हैं |पौराणिक किम्वदंतियों का सांकेतिक एयर तर्क-पूर्ण अर्थ ही शिवकारी हो सकता है और विवादों से दूर भी ! 
(सभी  चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)






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‘धन तेरस’ की तुम्हें ‘वधाई’, ’दीपावली’से पहले !
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ऐसा ‘पावन प्रेम’ जगाये, अबकी ‘यह दीवाली’ |

‘धरा और ‘आकाश’,’पवन’, ‘जल’, दें सब को ‘खुशहाली’ ||

‘हर चहरे’ पर रहे साल भर, यहाँ ‘खुशी की लाली’ |

कहीं किसी के ‘मन-आँगन’ में, गिरे न् ‘रातें काली’ ||


‘राम’ करें, पूरे हो जायें, सब के ‘स्वप्न रुपहले’ ||

‘धन तेरस’ की तुम्हें ‘वधाई’, ’दीपावली’से पहले !!१!!



‘धन्वतरि’ की ‘पूजा’ का दिन, आज ‘साथियो’ आया |

‘यह पूजा’ सार्थक तभी, यदि, ‘तन-मन’ स्वस्थ बनाया ||

‘नियम और संयम’ से जिसने, ‘हर आचरण’ निभाया |

वही व्यक्ति, ‘इस देव-वैद्य’ को, समझो, निश्चय भाया ||

‘चिर आयु-वरदान’ आज वह, बढ़ कर इन से ले ले ||

‘धन तेरस’ की तुम्हें ‘वधाई’, ’दीपावली’से पहले !!२!!


‘धन-पति कुबेर’ की पूजा का यह दिन, लोग बताते |  

कहते हैं, ‘इस पूजा’ से, सब लोग, ‘धनी’ हो जाते ||

‘धन-लोलुपता’ छोड़, ‘परिश्रम’ से जो ‘वित्त’ कमाते |


‘अहंकार-मद-हीन अमीरी’ में ‘जीवन’ जो बिताते ||

‘राजयोग’ का पालन करते, ये ‘ज्ञानी अलबेले’ ||

‘धन तेरस’ की तुम्हें ‘वधाई’, ’दीपावली’ से पहले !!३!!



“प्रसून” तुम ‘ईमान’ बेच कर, ‘धन’ मत कभी कामाना !

कोई ‘ज़रूरतमन्द’ फांसने, मत ‘छल-जाल’ बिछाना !!

घूस की ‘बंछी’ में मत ‘मछली’, कोई कहीं  फंसाना !

‘भ्रष्टाचार’ के ‘पंक-मार्ग’ पर, मत भूले से जाना !!

कभी बनाना मत ‘काले धन’ से तुम ‘महल दुमहले’ !!

‘धन तेरस’ की तुम्हें ‘वधाई’, ’दीपावली’ से पहले !!४!!




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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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