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बुधवार, 27 नवंबर 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ढ)धरती का भार |(२)हमारी भूल |

सारे चित्र 'गूगल-खोज से साभार |
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बिना खाद-पानी मिटे, हैं खुशियों के फूल |
देखो कितनी खल रही, हमें हमारी भूल !!
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यह आबादी देश की, बनी हुई अभिशाप |
‘अभाव’ से पीड़ित हुई, उगल रही है ‘पाप’ ||
सुखदायी होंती नहीं, ‘जनसंख्या-स्फीति’ |
इससे घटने लगी अब, है ‘आपस की प्रीति’ ||
सम्बन्धों के बाग में, उगने लगे ‘बबूल’ |
देखो कितनी खल रही, हमें हमारी भूल !!१!!

महँगी हैं सब सब्ज़ियाँ, महंगे आटा-डाल |
पैसे वाले भी दुखी, क्या खायें कंगाल ??
महँगे लकड़ी-कोयला, औ मिट्टी का तेल |
महँगा हर ईंधन हुआ, रहे सव्भी दुःख झेल ||
चिंताओं से हो रहे, सारे सुख निर्मूल |
देखो कितनी खल रही, हमें हमारी भूल !!२!!



“प्रसून” बागों में नहीं, ‘काँटे’ हैं भरपूर |
‘भँवरे-तितली’ प्यार के, चैन-अमन से दूर ||
जहाँ-तहाँ मुरझा गयी, ‘आशाओं की बेल’ |
बड़ा घिनौना झेलती, यह ‘आबादी’ खेल ||
‘सुविधाओं की पत्तियों’, पर है ‘दुविधा-धूल’ |
 देखो कितनी खल रही, हमें हमारी भूल !!३!!
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सोमवार, 25 नवंबर 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ढ)धरती का भार | (१) आबादी’ का अंजाम

(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 

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रहने को मिलता नहीं, ढूँढे कहीं मुकाम |
‘आबादी’ का देखिये, बहुत बुरा अंजाम ||

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इससे महँगाई बढ़ी, गरम हुये ‘बाज़ार’ |
‘अर्थ-तन्त्र’ के सिन्धु में, आया मानो ज्वार ||
बढ़ी ‘भुखमरी’ बेतरह, पनपे अनेक रोग |
महँगी हुईं दवाइयाँ, व्याकुल कितने लोग !!
घर में पड़े मरीज़ हैं, नहीं जेब में दाम |
‘आबादी’ का देखिये, बहुत बुरा अंजाम !!१!!


‘नदियाँ संयम की’ रहीं, अपने तट को काट |
तितर-बितर सा हो रहा, है ‘जल’ बाराबाट ||
‘जन-संख्या की नदी’ में, आया विकट उफ़ान |
इस अनचाही बाढ़ से, विनशे ‘सुख-उद्यान’ ||
दुखद लबालव छलकता, यह ‘शरबत का जाम’ |
‘आबादी’ का देखिये, बहुत बुरा अंजाम !!२!!


आयु से पहले मिटे, खिलते हुये “प्रसून” |
पता नहीं क्या करेगा, ‘रति’ का बढ़ा जूनून ||
‘पंछी’ इतने बढ़ गये, छोटे सारे ‘नीड़’ |
हमें बहुत खलने लगी, है सड़कों की भीड़ ||
जहाँ तहाँ लगने लगे, हैं हर पथ जाम |
‘आबादी’ का देखिये, बहुत बुरा अंजाम !!३!!



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रविवार, 3 नवंबर 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (त)दीवाली के आस पास | (शुभ कामनाओं का गुलदस्ता )

(३)दीपावली
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घोर ‘अमावस-लोक’ में, हो ‘प्रकाश’ का राज | ‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||

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‘व्यवहारों के दीप’ में, भरें ‘प्रेम का तेल’ |
‘बाती सच्ची प्रीति की’, हो आपस में मेल ||
खील-बताशों की तरह, खिले मुखुर हो प्यार |
अपना सब को ही लगे, यह सारा संसार ||
बुरी प्रथा अब जुवे की, त्यागे अखिल समाज |
‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||१||

 
‘लक्ष्मी’ सारी नारियाँ, बच्चे सभी ‘गणेश’ |
जिस में हो शालीनता,पहनें ऐसा वेश ||
‘सरस्वती’ मन में जगे, उपजें ‘मीठे राग’ |
जलें ‘स्नेह के दीप’ पर,बुझे ‘द्वेष की आग’ ||
गिरे किसी के भाग्य पर, कहीं न ‘दुःख की गाज |
‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||२||


घर-घर बजें वधाइयाँ, धूम, धडाका, शोर |
खुशियों की सौगात दे, सब को कल का भोर ||
हो वर्द्धन ‘गौ-वंश’ का, ‘गोवर्द्धन’ को पूज |
भाई- बहिन के भेद को, मेटे ‘भय्या-दूज’ ||
‘महँगाई’ को मारने हो बुलन्द ‘आवाज़’ |
‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||३||

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शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (त)दीवाली के आस पास | (शुभ कामनाओं का गुलदस्ता )

सभी मित्रों को शुभ दीपावली-'पन्च पर्व'| कुबेर इस रचना में समाज का पूजीवादी वर्ग का प्रतीक है और धन्वंतरी चिकित्सा पद्धातियों से जुड़े वर्ग का | आज दोनों एक दूसरे का पर्याय हो गये हैं |देखिये एक सार्थक प्रतीकवादी दोहा-गीत अभिधा, लक्षणा-व्यन्जना तीनों शब्द-शक्तियों में !
(सारे चित्र 'गूगल-खोज से साभार)      


 
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(१)धन-त्रयोदशी (धन्वन्तरि-कुबेर के प्रति)
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भूखे को दें अन्न-घर, वस्त्र, करें मत देर !
धन-तेरस के पर्व पर, श्री-धनवन्त कुबेर !!
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धन्वन्तरी, कुबेर हों, मत केवल ‘धन-दास’ |
रोग-निवारण के लिये, जायें सब के पास ||
धन-हीनों पर हों सदा, वैद्य-हकीम उदार |
औषधियों पर मत पड़े, ‘महँगाई’ की मार ||
‘लोभ-पिशाचों’ का करें, विनाश देर अबेर |
धन-तेरस के पर्व पर, श्री-धनवन्त कुबेर !!१!!

यम्-संयम औ नियम सब, करें संतुलित भोग |
तन-मन के सारे मिटें,  मारक-घातक रोग ||
चित में बसी बुराइयों, की न बढ़े परिमाप |
मत मन में व्यापें अधिक, घातक-पातक पाप ||
‘मानस-पत्’ पर प्रेम की, दें तस्वीर उकेर |
धन-तेरस के पर्व पर, श्री-धनवन्त कुबेर !!२!!

हर ‘इन्द्रिय’ में शुद्धता, हो, ‘मल’ रहे न शेष |
देश-वासियों को मिले, इतना ज्ञान विशेष ||
‘समाज-तन’ नीरोग हो, बढ़े और सुख-शान्ति |
‘धन ईश्वर से बड़ा है’, मत फैले यह भ्रान्ति ||
“प्रसून” पूँजीवाद में, करें न अब अन्धेर |
धन-तेरस के पर्व पर, श्री-धनवन्त कुबेर !!३!!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

 

सरदार बल्लभ भाई पटेल समर्पित एक रचना हेतु मेरे ब्लॉग प्रसून पर आप सादर आमंत्रित हैं | पधार कर कृतार्थ करें !     

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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