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सोमवार, 6 मई 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ठ) आधा संसार | (नारी उत्पीडन के कारण) (१) वासाना-कारा |(|) अभाव-जाल |

इस नए सर्ग में नारी उत्पीडन के अनेक कारणों में से अभावग्रस्त परिवार में नशाखोरी की ओर संकेत है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)



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कुछ ‘पश्चिम की सभ्यता’, कुछ ‘अभाव का भार’ |
फँसा  ‘वासना - जाल’  में,  है  ‘आधा  संसार’ ||

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महा नगर  में  देखिये,   अजब   निराली   शान |
सस्ती  महँगी  बिक  रही,  ‘नारी - तन की आन’ ||
तन  के  लोलुप  हैं  कई,  ‘काम के प्यासे’  लोग |
‘रूप की सुरा’  खरीद  कर,  करते  ‘कामुक भोग’ ||
इस  ‘विकास’  ने  घिनौने,  कितने  किये  ‘प्रहार’ |
फँसा  ‘वासना - जाल’  में,  है  ‘आधा  संसार’ ||१||


गाँजा-सुल्फा आदि  के,  नशे  के   हुये  ‘गुलाम’  |
इन को पी, धन  फूँक कर,  घर  आते  हैं  शाम ||
मज़दूरी  कर  दिवस  भर,  रचते   कई   फरेब  |
लगा   जुवे के दाँव   पर,   खाली  करते  ‘जेब’ ||



उनकी  कुल -वधु-बेटियाँ,  करतीं  ‘तन - व्यापार’  |
फँसा  ‘वासना - जाल’  में,  है  ‘आधा  संसार’ ||२||
नशेड़ियों   की   झुग्गियाँ,   बनीं  ‘भोग-बाज़ार’  |
इनमें    बेबस    नारियाँ,    ललनाएँ   लाचार  ||
जिन पर  गिरती  ‘भूख की, ‘निठुर  निगोडी गाज’ |
‘कई’  सुता  की  बेचतीं,  ‘कोमल - कोरी  लाज’ ||
‘निपटातीं’  ऋण  ‘लाज’  से,  ले कर  कई  उधार |
फँसा  ‘वासना - जाल’  में,  है  ‘आधा  संसार’ ||३||

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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