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गुरुवार, 15 नवंबर 2012

दीपावली की रचनायें (८)गोवर्द्धन गिरिधारी


(सारे चित्र गूगल-खोज से साभार)  




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लाखों गायें चराईं थीं, ‘गोवर्द्धन गिरिधारी’ ने |
वन औ बाग बचाये थे, ‘वृज-वासी वनवारी’ ने ||
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‘दानव’ मारे, ‘पर्यावरण’ के घातक, धूर्त पिशाचों से |
‘व्रज’ क्या, ‘पूरा देश’ बचाया, ‘नारकीय कु-विनाशों’ से ||
‘मानवता’ की रक्षा की थी, ‘प्यारे कृष्ण मुरारी’ ने ||
लाखों गायें चराईं थीं, ‘गोवर्द्धन गिरिधारी’ ने ||१||

‘न्याय’ का दिया साथ ‘कान्हां’ ने, ‘लाज’ बचाई ‘नारी’ की |
‘निर्धन’ को अपनाया, बना के मीत, ‘सम्पदा’ वारी थी ||
एक ‘नये ही युग’ की ‘रचना’ की, ‘द्वापर-अवतारी’ ने ||
लाखों गायें चराईं थीं, ‘गोवर्द्धन गिरिधारी’ ने ||२||


“प्रसून” खिला के, आचरणों के, ‘बागों’ में ‘व्यवहारों’ के |
‘अहंकारों से हीन’ किये थे, कितने ‘यत्न’ सुधारों के ||
इसी लिये तो, ‘वासुदेव’ को पूजा हर ‘नर’-‘नारी’ ने ||
लाखों गायें चराईं थीं, ‘गोवर्द्धन गिरिधारी’ ने ||३||


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दीपावली की रचनायें(७)भैया-दूज




भाई-दूज का टीका करने, बहन  'भ्रात-घर' आये |

'भाई-बहन' के प्यार' को यह त्यौहार 'अमर' कर जाये |

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घर से चल कर आयी बहना, मन के मोती धोये |

थाल में लिये मिठाई, 'मन' में 'शुभकामना' संजोये || 

'मीठे हर्ष'  बटोरे आई  बहन  दुआयें  करती-

'दुखड़े' कभी न जागें, 'खुशियाँ, और कभी मत सोयें ||

'दुर्भाग्य' का पाँव पड़े मत, कभी 'तुम्हारी देहरी'- 

भैया के सौभाग- बाग' पर, 'आँच' कभी मत आये ||

भाई-दूज का टीका करने, बहन  'भ्रात-घर' आये ||१||


कभी न 'क्षत' हों  'प्रेम-भावना', अर्थ यही 'अक्षत' का |

पुष्पों का है अर्थ कि, महके रूप 'ह्रदय-मधुवन' का ||

'रोली', 'खुशियों की लाली' का रंग निखारे निशि-दिन-   

तथा 'कलाबा' और करे दृढ़, 'बन्धन भाई बहन का' ||

'दीप आरती का' जीवन भर, 'जगमग  ज्योति' बिखरे-   

'सरस  नारियल'  उस  की  'बुद्धि'  में, 'मधुरिम स्नेह' बसाये ||

 भाई-दूज का टीका करने, बहन  'भ्रात-घर' आये ||२||

'हर भैया' सद्गुणी बने औ,जीवन सफल बिताये !

हर बहना आचरणवती हो, रूप और गुण पाये  !!


दोनों अपना 'आप' सुधारें, फिर यह देश सुधारें-

'व्रत' लें ' आदर्शों का, ऐसी  'भैयादूज' मनायें  ||

'नयी सोच' में  'सोच पुरानी', 'मिसरी-जल' सी घोलें-  

कुछ 'कुरीतियाँ'  दूर करें, कुछ 'अच्छी रीति' निभायें ||


 भाई-दूज का टीका करने, बहन  'भ्रात-घर' आये ||३||


कर के टीका, कहती बहना, अरे ध्यान धर भैया !


दान में मुझे न चाहिये सोना,चाँदी, या कि रुपैया  !!

जब आऊँ तो 'प्यार' मुझे, परिवार सहित तुम करना !  

खिले सुहाने "प्रसून" जैसे, हँसो उम्र भर 'भैया' !!

'कड़वाहट' घर करे न  'मन' में, मिठास साथ न छोड़े- 

'ऐसा मीठा' खाये भैया,बहना उसे खिलाये ||

भाई-दूज का टीका करने, बहन  'भ्रात-घर' आये ||४||



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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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