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मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

नयी करवट(दोहा-ग़ज़लों पर एक काव्य) द्वादशम कुञ्ज(काल-बोध) पञ्चम पादप (शिशिर)(२)नव वर्ष दिवस’

(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 

!!नव वर्ष की सभी मित्रों को हार्दिक वधाई !!


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विगत वर्ष कल हो गया, देखो आज ‘अतीत’ !
गायें मिल कर चलो हम, नए वर्ष के गीत !!    
‘मन-वीणा’ में ‘आस’ के, कभी न टूटें ‘तार’ !
‘सुर सरगम’ जीवित रहे, बना रहे ‘संगीत’ !!


ये ‘पनघट’ अनुराग के, रखो सँभल कर ‘पाँव’ !
यहाँ लुढ़क कर ‘प्रेम-घट’, कहीं न जाये रीत ||


‘महँगाई’ ने ‘जंग’ का, किया आज ‘ऐलान’ |
एक साथ, हो ‘एक जुट’, ‘जंग’ सकेंगे जीत ||
मत पछतायें याद कर, ‘विगत दिनों की बात’ !
कब आते है लौट कर, गये दिवस जो बीत ??
‘कुण्ठा’ के ‘हिम-पात’ से, मिटें न प्रेम-“प्रसून” !
फटक न पायें ‘ह्रदय’ में, भाव अनमने-‘शीत’ !! 

 
मेरे ब्लॉग 'प्रसून' पर भी  'नये वर्ष का अभिन्दन !'पर आप

का स्वागत है !


नयी करवट(दोहा-ग़ज़लों पर एक काव्य) (१२) काल-बोध(क) विगत वर्ष की विदाई |

(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
सभी मित्रों को 'विगत वर्ष की विदाई' की शुभ कामना !! 

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आयेगा ‘नव वर्ष’ कल, गया ‘पुराना’ बीत |
आओ ! मिल कर हम सभी, गायें ‘मंगल-गीत’ !!
‘निष्ठा-वीणा’ में जुड़े, ‘तार’ बनें ‘व्यवहार’ !
‘सुख-सरगम’ जीवन्त हों, बजे ‘स्नेह-संगीत’ ||

रहे ‘पूस’ के मॉस में, एक ‘विरोधाभास’ !
‘गरम जोशियाँ’ ‘ठंड’ से, कहीं न जायें शीत !!  
अगर ‘प्रेम के दूध’ में, आये कभी ‘खटास’ |
‘‘दूध’ फट गया है’ कभी, ऐसा हो न प्रतीत !!


‘आत्म-चिन्तन’, ‘दधि’ बने, ‘मथनी’, ‘प्रीति-सुनीति’ !’
‘विशलेषण’, ‘मन्थन’ बने, मिले ‘स्नेह-नवनीत’ !!


आचरणों के बाग’ में, सुन्दर खिलें “प्रसून” !
‘मधु’ औ ‘मीठी गन्ध’ के, ‘घट’ मत जायें रीत !!

 

 मेरे ब्लॉग 'प्रसून' पर भी  'विगत वर्ष की विदाई' पर आप का स्वागत है  !  


 


  

  

   



  
   






   

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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