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रविवार, 10 मार्च 2013

हे शिव !जागो !!(मेरे काव्य 'शंख-नाद' में नयी रचना)


मेरी एक बहुत पुरानी पुस्तक- -हेशिव की बहुत लम्बी रचना का संक्षिप्त स्वरूप, सब को  'महा शिवरात्रि' की 
शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत ! रचना में 'व्यष्टि ब्रह्म' के स्थान पर 'समष्टि ब्रह्म' को जागृत करने का प्रयास है ! (चित्र 'गूगल-खोज' से )    



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हे शिव जागो ! निद्रा त्यागो !! यहाँ मची है , ‘भागो ! भागो !!’
तुम ज्ञानी हो, विज्ञानी हो | हे शिव तुम अवढर दानी हो ||
नेत्र तीसरा खोलो, देखो ! अपनी ‘भेदी दृष्टि’ को फेको !!  
देखो कितने ‘सर्प विषैले’ | कुछ जत्थे में, कई अकेले ||
‘अपकर्मों’ में ये अलबेले | बड़े घिनौने खेल ये खेले ||
निज ‘बाँबी’ से निकल रहे हैं | कर जनता को विकल रहे हैं ||१||


इनकी ‘बाँबी’ हर बस्ती में | ये स्वच्छन्द बहुत मस्ती में ||
फैलाये ‘आतंकों के फन’ | इन से डरे हुये सारे जन ||
इन से पीड़ित दुनियाँ सारी | ‘पैशाचिकता’ इन से हारी ||
इन से हार गयी मक्कारी | ये सारे हैं ‘इच्छाधारी’ ||
मन चाहे ये काम हैं करते | मनचाहे ये रूप हैं धरते ||
तरह तरह के वेश बदलते | हर परिधान में सब को खलते ||२||


लगते हैं तो हैं ये ‘वैरागी’ | पर इन के आचरण हैं दागी ||
इन में कुछ नकली अभिनेता | इन में से कुछ दीखते नेता ||
 इन में है विष अपराधों का | इन में विष झूठे वादों का ||
खा पी कर हैं ये मुस्तंडे | मुफ़्त की खाते हैं कुछ गुण्डे ||
राजनीति में दाग लगाते | ‘विश्व-शान्ति’ में ‘आग लगाते’ ||
नकली शिव को भले ये लगते | और उन्हीं के गले ये लगते ||३||


हैं उनके हाथों के मोहरे | आचरणों से हैं ये दोहरे ||
ये उन को हैं चढ़ावा देते | वे इन को हैं बढ़ावा देते ||
तुम्हें और क्या अधिक सुनाऊँ ? सर्वज्ञ तुम्हें मैं क्या बताऊँ !!
अब जागो तुम बहुत सो चुके ! गहरी नींद में बहुत खो चुके ||
हे ‘समाज शिव’ ! उठो उठो तुम ! ‘अशिव-नाश’ में जुटो जुटो तुम !!
इन ‘पापी साँपों’ को मेटो ! या फिर इन के पाप समेटो !!४!!


जल्दी ‘नेत्र तीसरा’ खोलो ! ‘निद्रा के आसान’ से डोलो !!
अपनी ऊर्जा को पहचानो ! अपनी ‘छिपी शक्ति’ को जानो !!
तुम चाहो तो इन को मारो ! या फिर चाहे इन्हें सुधारों !!
बस, इन के आचरण निखारो ! शिर-गंगा-धारा से पखारो !!
गिरे हुये हैं, इन्हें उठाओ ! तब फिर इन्हें गले लगाओ !!
जो न सुधरें उन्हें मिटाओ ! अपनी ‘जन-गण-शक्ति’ जुटाओ !!५!!


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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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