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रविवार, 30 दिसंबर 2012

सामयिकी (५)देश दुखी है!(वर्षान्त के बाद 'नव वर्ष' के पूर्व लज्जाजनक अँधेरा)


'बयान बाजी' से तंग' 'भंग व्यवस्था' से भटकी 'वास्तविकता' की 'पीड़ा' | 'वास्यविकता' मुहँ छिपा कर कहीं 'अज्ञात-वास' में है ! 'वनवास' में है ! उसे ढूँढ़ें !! 'देश की अस्मत' लुटी भी और मर भी गयी | 'कोमलता', 'कठोरता' में बदल गयी ! (सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 
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(‘मुकुर’ में समन्वित एक ताज़ी सामयिक रचना)


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देश दुखी है नेताओं के ‘घटिया-कुटिल’ बयानों से |

देश दुखी आये दिन होते, ‘नारी’ के अपमानों से ||


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जिनकी स्थिर बुद्धि नहीं है, ’कलुषित मन’ के स्वामी हैं |

‘विलासिता’ की चिकनाहट के पथ’ के जो ‘अनुगामी’ हैं ||

इनके पाँ फिसल जाते हैं, ‘पतन-गर्त’ में गिरते हैं-

‘धरती’ की जो ‘बात’ कर रहे, ‘ऊँचे उठे मकानों’ से ||

देश दुखी है नेताओं के ‘घटिया-कुटिल’ बयानों से |

देश दुखी आये दिन होते, ‘नारी’ के अपमानों से ||१||

 
‘भारत देश की जनता’ इतनी ‘भोली सीधी सादी’ क्यों ?

‘सावन के अन्धे गदहों’ पर, ‘जिम्मेदारी’ लादी क्यों ??

यह कहते हैं, ‘बंजर-ऊसर धरती’ कहीं नहीं होगी-

‘मरुधर’ कोसों दूर रहेगा, ‘हरे भरे अरमानों’ से ||

देश दुखी है नेताओं के ‘घटिया-कुटिल’ बयानों से |

देश दुखी आये दिन होते, ‘नारी’ के अपमानों से ||२||


‘महँगाई’ इनकी ‘जेबों’ में, ‘भ्रष्टाचार’ है ‘झोली’ में |

बाँट रहे ‘जनता’ को ‘राशन’ डटे हुये ‘घटतोली’ में ||

‘करुणा’, ’उदार सोच’ नहीं है, ‘सेवा’ का है ‘भाव’ नहीं-

केवल ‘जमाखोरियाँ’ मिलतीं, इनकी ‘बड़ी दुकानों’ में ||

देश दुखी है नेताओं के ‘घटिया-कुटिल’ बयानों से |

देश दुखी आये दिन होते, ‘नारी’ के अपमानों से ||३||
   

“प्रसून” सारे मुरझाये हैं, इनकी ‘हविश’ की ‘गर्मी’ से |

‘कलियाँ’ ‘मुहँ’ को छुपा रहीं हैं, ‘कुदृष्टि की बेशर्मी’ से || 

‘कुवासना’ से जोड़ के ‘नाता’, लिपटे ‘विवसन रूप’ से हैं-

‘इनके होंठ’ रसीले केवल, ‘छलक रहे पैमानों’ से |

देश दुखी है नेताओं के ‘घटिया-कुटिल’ बयानों से |

देश दुखी आये दिन होते, ‘नारी’ के अपमानों से ||४||


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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

सामयिकी (४)हृदय में जली हुई ज्वाला !(एक विरोधाभास) काव्य ज्वालामुखी में एक नयी सामयिक रचना


विचित्र बात है कि,एक ओर प्रगति का 'अमन के डंके' पर 'स्वाँग भरा 


नाटक' !दूसरी ओर 'भ्रष्टाचार का दानवीय विकास ! 'अमन' के 'ठंडे 
आवरण' में 'दुराचरणों की  जलती  आग की भट्टी'!!
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 



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ज्वालामुखी(एक ओजगुणीय काव्य)में एक नयी

रचना ‘सामयिक परिस्थिति’ में !

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बाहर कितनी ‘ठण्ड’,’हृदय’ में धधकी हुई है ‘ज्वाला’ !

‘काल’ ने अपने ‘आँचल’ में ज्यों जलती ‘आग’ को  पाला ||

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‘पीड़ा भरी कराह’ उठ रही, ‘दर्द भरी’ है ‘सिसकी’ |

‘अमन की देवी’ पर ऐसी, ‘बदनज़र’ पड़ी है किसकी ??

‘धीरे धीरे ‘आँसू’ रिसते, ‘नयन’ हो गये गीले-

‘मानवता’ को ‘दर्द’ हुआ ज्यों, दुखा हो कोई ‘छाला’ ||

बाहर कितनी ‘ठण्ड’,’हृदय’ में धधकी हुई है ‘ज्वाला’ !

‘काल’ ने अपने ‘आँचल’ में ज्यों जलती ‘आग’ को पाला||१||

 

‘लाज की हिरणी’ तड़फ़ तडफ कर, लेती ‘अन्तिम साँसें’ |

डसने को ‘वासना की नागिन’, आई इसे कहाँ से ??

‘संयम’ टूट गया, ‘धीरज’ ने अपनी ‘करवट’ बदली –

लिख न जाये ‘इतिहास’ में ‘खूनी पृष्ठ कोई काला’ ||

बाहर कितनी ‘ठण्ड’,’हृदय’ में धधकी हुई है ‘ज्वाला’ !

‘काल’ ने अपने ‘आँचल’ में ज्यों जलती ‘आग’ को पाला||२||

 

अब नारी की ‘सहन-शक्ति’ की ‘बन्धन-डोरी’ टूटी |

‘अबला’ है वह, ‘बात पुरानी’ हुई है सारी झूठी ||

पाकर ‘अतिशय चोट’ हिली है इस ‘धरती’ की काया’-

लगता है, अब ‘प्रलय का आलम ’ यहाँ पे आने वाला ||

बाहर कितनी ‘ठण्ड’, ’हृदय’ में धधकी हुई है ‘ज्वाला’ !

‘काल’ ने अपने ‘आँचल’ में ज्यों जलती 'आग' को पाला||३||

 


 

‘पुरखों ने जो बाग  यहाँ थे सुन्दर कई लगाये |

इनमें धोखे से ‘विष वाले पौधे', कुछ उग आये ||

इनके ‘ज़हरीलेपन’ से हम कितने हुये विकल हैं-

जिसने इनका ‘स्वाद’ चखा है, ‘काल’ का हुआ ‘निवाला’ ||

बाहर कितनी ‘ठण्ड’,’हृदय’ में धधकी हुई है ‘ज्वाला’ !

‘काल’ ने अपने ‘आँचल’ में ज्यों जलती ‘आग’ को पाला||४||



‘आग के दरिया’ ने सींचे है, ‘खिले बगीचे सारे’ |

‘चिनगारी’ बन गयीं हैं ‘कलियाँ’, औ “प्रसून” ‘अंगारे’ ||

इस ‘विकास के दौर’ में अन्तर ‘बात’ समझने में है –

हम ने इस को ‘लपट’ कह दिया, तुमने कहा ‘उजाला’ ||

बाहर कितनी ‘ठण्ड’,’हृदय’ में धधकी हुई है ‘ज्वाला’ !

‘काल’ ने अपने ‘आँचल’ में ज्यों जलती ‘आग’ को पाला||५||


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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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