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बुधवार, 27 मार्च 2013

होली एक बोझ | (भय्या काहे का त्यौहार ?)


मौज-मस्ती की  कल्पना हर पर्व में होती है | कुरीतियों, अभावों महँगाई आदि से कल्पनाएँ धूल में मिलती दिखाई देती हैं | बनावटी स्वागत-सम्मान, आडंबर, दम्भ आदि ने होली की मिठास में कटुताएं  भर दी है |भावुकता पर पड़ी चोट की और यथार्थ संकेत !
(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)    



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प्यार नहीं जो, मन में उपजी ‘कड़वी कड़वी रार’ |
भय्या काहे का त्यौहार ?
काहे का त्यौहार ?
भय्या काहे का त्यौहार ??


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क्यों ‘नफ़रत’ से भरी तिज़ोरी, तूने मन की |
‘प्यार की दौलत’ असली ‘दौलत’ है जीवन की ||
रूठे मीतों को अपना कर  |  
‘प्रेम’ उघा ले घर घर जा कर ||
‘घृणा के मसले’ मत बापस ले-
दे इस तरह उधार !
भय्या तब होगा त्यौहार ||
प्यार नहीं जो, मन में उपजी ‘कड़वी कड़वी रार’ |
    भय्या काहे का त्यौहार ?
काहे का त्यौहार ?
भय्या काहे का त्यौहार ??१??


 सारे ‘शिकबे-गिले’ मेट ले मन के अपने |
दुश्मन से भी गले भेंट ले, देख वे सपने ||


क्यों बैठा ऐंठा शरमाकर |
उठ रे मिल तू सब से आकार ||
‘मानवता का मूल्य’ प्यार है-
 यह समझे ‘संसार’-
भय्या बता रहा त्यौहार |
प्यार नहीं जो, मन में उपजी ‘कड़वी कड़वी रार’ |    
भय्या काहे का त्यौहार ?
काहे का त्यौहार ?
भय्या काहे का त्यौहार ??२??


‘प्यार’ से अपने वैरी भी तो सगे हुये हैं ||
‘आठों योग’ प्यार के रंग में रँगे हुये हैं |
‘मन मंदिर’ में ‘प्यार’ बसा कर |
दिल अपने ‘प्रियतम’ से लगाकर ||
सूर, कबीरा, तुलसी, मीरा-



सब ने किया था ‘प्यार’-
हम को समझाता त्यौहार ||
प्यार नहीं जो, मन में उपजी ‘कड़वी कड़वी रार’ |
भय्या काहे का त्यौहार ?
काहे का त्यौहार ?
भय्या काहे का त्यौहार ??३??

खिले “प्रसून”, गीत गाते हैं इन पर भँवरे |
‘हृदय-मिलन’ को ‘कीट-पतंगे’ भी बेसबरे ||



‘प्यार की क़ीमत’ सभी भुलाकर |
तू बैठा क्यों ‘गाल फुला कर’ ??   
 अपने ‘प्यार’ का बजा दे ‘डंका’-
जाकर ‘बीच बज़ार’-
भय्या शुभ होली-त्योंहार !!
प्यार नहीं जो, मन में उपजी ‘कड़वी कड़वी रार’ |    
भय्या काहे का त्यौहार ?
काहे का त्यौहार ?
भय्या काहे का त्यौहार ??४??



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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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