घोर निराशा को तजे, ‘आम आदमी’ आज |
‘आशा-सज्जा’ से सजे, ‘आम आदमी’ आज ||
छोड़े ‘पूँजी-वाद’ को, ‘जाति-वाद’ को छोड़ |
ले ‘आज़ादी’ के मज़े, ‘आम आदमी’ आज ||
करने लगा ‘प्रकाश’ कुछ, बन कर ‘तम’ में ‘दीप’ |
किसी ‘हवा’ से मत बुझे, ‘आम आदमी’ आज ||
छाया ‘सन्नाटा’ हटा, गूँज उठी ‘आवाज’ |
क्योंकि ‘बिगुल’ बन कर बजे, ‘आम आदमी’ आज ||
निखरे ‘सोने’ से खरे,हटी मलिन हर ‘पर्त’ |
‘अग्नि-प्रेरणा’ से मँजे, ‘आम आदमी’ आज ||
छँटी उदासी ‘आप’ की, मन में खिले “प्रसून” |
अच्छे लगते फिर मुझे, ‘आम आदमी’ आज ||