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मंगलवार, 30 सितंबर 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (12) दिगम्बरा रति (ग) सभ्य आदिमानव |

(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
नग्नवाद  ने  आजकलकिये कलुष व्यवहार !
गंगाजल  में  घुल गयीहै मदिरा की धार !!
लाज-शील  के  देखियेटूटे  नाज़ुक  तार !
चीर-हरण  के  लिये  खुदद्रौपदियाँ तैयार !!
बहुत  भला  होता  नहींयह  जीने का ढंग |
आचरणों की सतह  परचढ़ा  प्रदूषित रंग||
आदिमानवों की  तरहखुले  मिथुन-आचार !
गंगाजल में घुल गयीहै मदिरा की धार !!1!!
टूट  गयी  है  हया  कीकनकैया  की  डोर !
प्रगति-आँधियों,  ने  इसे, दिया आज झकझोर !!
कच्चे तिल में वासनाका  पनपा है तेल |
कमसिन कलियाँ औ भ्रमर, खेलें कामुक खेल ||
पूनम से पहले  उठाहै  सागर  में  ज्वार !
गंगाजल में घुल गयी,  है मदिरा की धार !!2!!
धन की प्यासी तितलियों, का देखो  तो  हाल !
उठा पंख के वसन वे, कमा रही हैं माल ||
आचरणों की झील के, जल  में  भड़की आग |
इन्हें देख कर रूप  की, प्यास  रही  है जाग ||
ठण्डे  बादल काटती, गरम तड़ित-तलवार !
गंगाजल में घुल गयीहै मदिरा की धार !!3!!

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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