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गुरुवार, 13 सितंबर 2012

हिन्दी दिल से लगाइये ! (शंख-नाद - मेरे एक ओज गुणीय काव्य से)


(ब्लॉग-तन्त्र के किसी दोष के कारण दिनांक एक दिन पीछे प्रदर्शित)


(सभी चित्र साभार,मूल चित्रकारों को सधन्यवाद उद्धृत) (१४-०९-२०१२)




हिन्द देश के निवासियों की भाषा, हिन्दी मीत,

वाणी में बसा के इसे दिल से लगाइये !

'चेतना औ प्रेरणा का शंख ' बजा बार बार,

जाग कर आप सारे देश को जगाइये !!

'एक भाषा-रस-धार ' ढार ढार,सींच सींच - 

'एकता के बाग ', 'प्रेम-पादप ' उगाइये !

हिन्द का जो खायें अन्न,इसका ही पियें  नीर,

हिन्दी ठुकरायें, उन्हें अंग न लगाइये !!१!!





'भारत माता की गोद में,ओ रहने वाले जन!

भाषा भी तो माता की ही आप अपनाइये !!

समझें औ बोलें चाहें,सारे जग की भाषायें,

किन्तु 'राष्ट्र-भाषा के स्वरूप ' को उठाइये !!

भाव,रस,छन्द,अलंकार,गुण-वृत्ति में है-

सजी हिन्दी इसे और सुन्दर बनाइये !!

उर्दू भी, अरबी औ फ़ारसी-प्रधान हिन्दी,

देखो रूठ जाये न यह  उसको मनाइये !!२!!






'संस्कृत-सुता ' हिन्दी,'अरबी औ फ़ारसी की 

सुता ' उर्दू है, दोनों जन्मीं हैं हिन्द में  |

'अग्रजा औ अनुजा ' सी,'गंगा और जमुना' सी     

दोनों ही रची बसी हैं,भाव,रस, छन्द में ||

क्रमश:'संस्कृत-अरबी प्रधान हिन्दी-

उर्दू ' जुड़ी  हैं दोनों 'प्रेम-अनुबन्ध ' में ||

दोनों को सरल कर, देवनागरी में लिख,

'प्रेम-रस-पान कर ' डूबिये आनन्द में !!३!!

 



 दोनों को ही सरल,सुबोधगम्य बना कर, 

'क्लिष्टता के कर्कश काँटों ' से बचाइये !!

जन-जन पढ़ें,सुनें, समझें औ बोलें,लिखें, 

'भाव-रस-रोचक साहित्य ' को रचाइये !!

गीत हो,गज़ल हो,कविता हो या कि नज़्म-

तथ्य वाली बात सब लोगों को सुनाइये !!

एक भाषा,एक भाव,एक राष्ट्र-भावना से-

'हर मन का सुमन 'आप ,महकाइये !!४!!  

 

हिन्दी–पखवाडा (हिन्दी भाषा- साहित्य के सम्मान में रचनाएँ) (१) घनाक्षरी-गीत (हिन्दी अपनाइये)


   

हिन्दी दिवस 

 की वधाई !
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! 


   
    
  
 (हिन्दी अपनाइये)


हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये |

और इस देश को यों स्वर्ग सा बनाइये ||

भाषा है ‘स्वतंत्रता की धुरी’ एक मात्र बन्धु |

भाषा में ही छुपा हुआ ‘भावना का सुधा-सिन्धु’ ||

एक भाषा,एक लिपि अपना के प्रेम से यों –

दूसरों की बात सुन,अपनी सुनाइये ||

हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||१||

 

भाषायें हैं और भी जो,उनका भी मान करें |

किन्तु उन्हें सीख इकार मत अभिमान करें ||

जो भी आये द्वार उसे आदर दुलार दे के –

‘निज स्वत्व’ बचा उसे गले से लगाइये ||

हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||२||



सभ्यता सभी की सीख पर-गुण मन धरें –

माना कि विकास करें,और ज्ञान-धन भरें ||

किन्तु निज संस्कृति, वाणी, जो विरासत में-

मिली इसे छोड़िये न ‘प्राण’ से बचाइये ||

हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||३||


‘एकता’,‘अनेकता’ में,माना मेरे देश में है |

कोई बात नहीं,माना भेद भूषा वेश में है ||

समझें जो बात लोग,‘गूँगे और बहरे’ न हों-

इस लिये हिन्दी भाषा सरल बनाइये ||

हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||४||



जैसे महासागर में सारी नदियाँ हों मिली |

भिन्न भिन्न फूलों से या सारी बगिया हो खिली ||

वैसे सारी भाषाओं के शब्द मेरी हिन्दी में हैं-

इस लिये हिन्दी निज ‘वाणी’ में बसाइये ||

हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||५||


 


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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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