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गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ज)स्वर्ण-कीट)(१) मैली चमक


कभी कभी सुन्दर दिखाई देने वाले कीड़ों के काटने से विष - प्रभाव इतना होता है कि जीवन समाप्त  हो जाता है | इसी प्रकार चमक दमक की आड़ में समाज में विषैला प्रदूषण ही फैलता है | हर चमीकीली चीज़ अच्छी नहीं होती |

(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार )


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हाथ में जुगनू पकड़ कर,  मलिन हुआ ‘स्पर्श’ |
‘लोभ की मैली चमक’  से,  उन्हें हुआ है हर्ष  ||



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‘सोने  के  पिंजर’   फँसी,   ‘मैना’   हुई   गुलाम |
‘बन्दी’ बन कर भोग सुख, ‘दण्ड’ को समझ ‘इनाम’ ||
‘तृष्णा  सोने  की’  बसा,   मन   व्याकुल  बेचैन |
जगते,  सोते,  ‘लाभ  की,  चिन्ता’  है  दिन  रैन ||
पतित  हुआ  है  ‘आचरण’,  समझ  रहे  ‘उत्कर्ष’ |
‘लोभ की मैली चमक’  से,  उन्हें  हुआ  है हर्ष ||१||



बेच  दिया  ‘ईमान’  को,  फिर  बेचा  है  ‘ज़मीर’ |
‘भावुकता’  के   तन   कसी,  ‘सोने   की  जंजीर’ ||
रिश्ते – नाते - दोस्ती,  सब   से   बढ़  कर वित्त |
अपनों से  बढ़ ‘स्वर्ण’ है,  लगा  उसी  में  ‘चित्त’ ||
बस  ‘सिक्कों  की  खनक’  में, दबे हैं ‘प्रेम-विमर्श’ |
‘लोभ की मैली चमक’  से,  उन्हें  हुआ  है  हर्ष ||२||



‘प्रेम’  हुआ  ‘व्यापार’  सा, ‘दिल  हो  गये  ‘दूकान’ |
‘धन की चोट’  से  हो  गये,  दुर्बल  हैं  ‘मन-प्राण’ ||
‘श्रद्धा - आस्था’  हो  गयीं,   हैं  कितनी   कमज़ोर |
‘भक्ति का मोती’ चुर  गया, घुसा  ‘लोभ  का चोर’ ||
फँसा   है   किस  ‘जंजाल’  में,   सारा   भारतवर्ष |
‘लोभ की मैली चमक’  से,  उन्हें  हुआ  है  हर्ष ||३||



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About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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