कभी कभी सुन्दर दिखाई देने वाले कीड़ों के काटने से विष - प्रभाव इतना होता है कि जीवन समाप्त  हो जाता है | इसी प्रकार चमक दमक की आड़ में समाज में विषैला प्रदूषण ही फैलता है | हर चमीकीली चीज़ अच्छी नहीं होती |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार )
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हाथ में जुगनू पकड़ कर,  मलिन हुआ ‘स्पर्श’ |
‘लोभ की मैली चमक’  से, 
उन्हें हुआ है हर्ष  ||
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‘सोने  के  पिंजर’   फँसी,   ‘मैना’  
हुई   गुलाम |
‘बन्दी’ बन कर भोग सुख,
‘दण्ड’ को समझ ‘इनाम’ ||
‘तृष्णा  सोने 
की’  बसा,   मन  
व्याकुल  बेचैन |
जगते,  सोते, 
‘लाभ  की,  चिन्ता’ 
है  दिन  रैन ||
पतित 
हुआ  है  ‘आचरण’, 
समझ  रहे  ‘उत्कर्ष’ |
‘लोभ की मैली चमक’  से, 
उन्हें  हुआ  है हर्ष ||१||
बेच  दिया  ‘ईमान’  को, 
फिर  बेचा  है 
‘ज़मीर’ |
‘भावुकता’  के   तन   कसी,  ‘सोने
  की  जंजीर’ ||
रिश्ते – नाते -
दोस्ती,  सब   से  
बढ़  कर वित्त |
अपनों से  बढ़ ‘स्वर्ण’ है,  लगा 
उसी  में  ‘चित्त’ ||
बस 
‘सिक्कों  की  खनक’ 
में, दबे हैं ‘प्रेम-विमर्श’ |
‘लोभ की मैली चमक’  से, 
उन्हें  हुआ  है 
हर्ष ||२||
‘प्रेम’  हुआ  ‘व्यापार’
 सा, ‘दिल 
हो  गये  ‘दूकान’ |
‘धन की चोट’ 
से  हो  गये, 
दुर्बल  हैं  ‘मन-प्राण’ ||
‘श्रद्धा - आस्था’  हो 
गयीं,   हैं  कितनी  
कमज़ोर |
‘भक्ति का मोती’ चुर  गया, घुसा 
‘लोभ  का चोर’ ||
फँसा  
है   किस  ‘जंजाल’ 
में,   सारा   भारतवर्ष |
‘लोभ की मैली चमक’  से, 
उन्हें  हुआ  है 
हर्ष ||३||
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