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बुधवार, 12 नवंबर 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (v) पर नुची कपोती |

(सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार)

धन-बल, जन-बलराज-बल, की हो गयी शिकार !
नारी पशुता से दबी, विवश अर्द्ध संसार !!
मुस्तण्डे-गुण्डे कई, कई कुधर्म-महन्त !
पाखण्डों का है नहीं, जिनके कोई अन्त !!
निसन्तान कुछ नारियाँ, फँस कर इनके जाल !
सम्मोहित तन सौंपतीं होतीं पूत-निहाल !!
ढोंगों के ऐसे खुले, तन्त्रमन्त्र-बाज़ार !
नारी पशुता से दबी, विवश अर्द्ध संसार !!1!!


झूठे वादों में फँसीं, कुछ धनिकों के जाल !
भोली कई किशोरियाँ, खोतीं लाज-प्रवाल !!
कहते बिना दहेज़ के, तुम से करूँ विवाह !
फिर धोखा दे छोडते, पूरी कर के चाह !!
बेटी निर्धन पिता की, सहतीं अत्याचार !
नारी पशुता से दबी, विवश अर्द्ध संसार!!2!!

कल अन्धेरे में लुटी, कुल-ललना की लाज !
जैसे किसी कबूतरी, के पर नोचे बाज !!
तितली को ज्यों छिपकली, निर्दय रखे दबोच !
या गुलाब की पंखुड़ी, निठुर पवन ले नोच !!
धूर्त दरिन्दे काम के, करते अत्याचार !
नारी पशुता से दबीविवश अर्द्ध संसार !!3!!

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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