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बुधवार, 12 दिसंबर 2012

मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(झ)ऊँचे रिश्ते ‘प्यार’ के | (४) भरें ‘प्रीति’ से ‘प्रान’ रे ! (प्रसाद तथाओज गुण का समन्वय)


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चलो चलें, दो पल हम हँस लें-
भरें ‘प्रीति’ से ‘प्रान’ रे !
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‘सच्चे प्रेम’ को भूल, ‘काम’ से|
लिपटे ‘ऊँचे धाम’-‘दाम’ से ||
‘आत्मा’ की ‘अनुभूति’ नहीं है-
‘लुब्ध’ हुये हैं ‘हाड़-चाम’ से ||
‘प्रेम की परिभाषा’ से ‘मानव’-
है कितना अनजान रे !!
चलो चलें, दो पल हम हँस लें-
भरें ‘प्रीति’ से ‘प्रान’ रे !!१!!


 
केवल ‘जीने की चाहत’ है |
मात्र ‘निज भरण’ में ही रत हैं ||
‘जोंक’ और ‘खटमल’ की नाईं-
‘पर चिन्ता’ से दूर, ‘विरत’ हैं ||
‘पशु-बल’ से हम आज चाहते-
हैं होना ‘धनवान’ रे !!
चलो चलें, दो पल हम हँस लें-
भरें ‘प्रीति’ से ‘प्रान’ रे !!२!!

‘थोथी’, दाबे ‘बगल’, ‘पोटली’ |
‘जीने की हर बात’ खोखली ||
‘पीत-हरे, अधमरे पर्ण’ हैं-
‘पल्लव-मूल’ हैं हुई ‘पोपली’ ||
‘चमक-दमक’ ही, ‘मानवता’ की-
बनी हुई ‘पहँचान’ रे !!
चलो चलें, दो पल हम हँस लें-
भरें ‘प्रीति’ से ‘प्रान’ रे !!३!!

‘लोहा, ताँबा, मिट्टी, पत्थर’ |
‘काठ, काँच, औ कठोर कंकर’ ||
‘मुख्य’ हुये हैं, ‘गौण’ हुआ है-
‘भाव-भरा भावुकता-परिसर’ ||
‘जड़-निर्जीव यंत्र’ से भी-
तो सस्ता ‘इंसान’ रे ||
चलो चलें, दो पल हम हँस लें-
भरें ‘प्रीति’ से ‘प्रान’ रे !!४!!

 

राज़ी राज़ी या बरज़ोरी |
लूट लाट कर चोरी चोरी ||
जेब काट कर, मांग या ठग कर-
चाह रहे सब, ‘भरें तिजोरी’ ||
‘स्वर्ण-रजत’ से बिका हुआ है-
यह ‘लोभी इंसान’ रे !!
चलो चलें, दो पल हम हँस लें-
भरें ‘प्रीति’ से ‘प्रान’ रे !!५!!

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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