(सारे चित्र ''गूगल-खोज' से साभार)
मित्रों ! इस काव्य-पुस्तक में प्रत्येक वन्दना-सर्ग में कुछ रचनायें परिवर्धित की हैं ताकि उस विषय में सभी पहलू सामने आ जाएँ -सारे दार्शनिक पक्ष उभर कर आयें ! आप का स्वागत है आप की शुभ कामना के पिपासा है | आप के मन में सरस्वती मुझे मार्ग-दर्शन देगी !!
आज पुन:उन रचनाओं के साथ आप की सेवा में उपस्थित हूँ, जों बाद में बढ़ाई गयी हैं !
वास्तव में ये रचनायें शीर्षक में वर्णित रस का प्रदर्शन न् कर के, उन रसों के वान्छित स्वरूप की माता से कामना करने के भाव से हैं !
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‘मनोमलिनता’-‘बोझ’
से, व्याकुल है संसार |
माता ! लदे
‘तनाव’ का, हर लो सारा ‘भार’ !!
सुकृत, सुधारक, ‘सुधारस-सिद्ध’ सलोने ‘हास’
|
‘सुमति—सुदाता’, गुदगुदे,
मन का करें विकास !!
‘दाने’ यथा
‘अनार’ के, मीठे सरस-सुस्वाद |
भरें ह्रदय
में ‘ज्ञान-रस’, जिन में हो न ‘विवाद’ !!
‘पूर्णतया’
वे ‘स्वस्थ’ हों, जो मन के ‘बीमार’ !
माता ! लदे
‘तनाव’ का, हर लो सारा ‘भार’ !!१!!
सुन्दर रोचक व्यंग्य हों, हों ‘कटुता’ से दूर !!
‘अन्तर्मन’ को कोंचते, हों न तनिक भी ‘क्रूर’ !!
‘हास्य’ हों ‘उथले’ नहीं, और न हों ‘अश्लील’ !
जो ‘तलछट’ को हिला कर, मलिन करें ‘मन-झील’ !!
‘पीड़ित’ मन
में झर उठे, ‘हास्य-रस’ की ‘धार’ !
माता ! लदे
‘तनाव’ का, हर लो सारा ‘भार’ !!२!!
‘पीड़ाओं’ का ‘तम’ हरें, रचें ‘प्रफुल्ल विहान’ !
‘प्राचि-किरण’ सी होठ पर, थिरक उठे ‘मुस्कान’ !!
हो सब का ‘कल्याण’ औ, हो न तनिक कम ‘क्षेम’!|
हँसें परस्पर सभी यों, बढ़े ‘ह्रदय’ में ‘प्रेम’ !!
‘जग’ को रखो
‘प्रसन्न’ माँ !, तुम करके ‘उपकार’ !
माता ! लदे
‘तनाव’ का, हर लो सारा ‘भार’ !!३!!