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शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

झरें नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य ) (एक नई रचना)


 
गान्धी जैसा कौन अब ?  
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कुक्कुरमुर्त्तों’ से उगे, ‘नेता’ आज अनेक |

गान्धी जैसा कौन अब, चले ‘लकुटिया’ टेक ??

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‘नेतागीरी’ आजकल, बना हुआ ‘व्यवसाय’ |

बने ‘झोपड़ी’ से ‘महल’, पा कर ‘मोटी आय‘||

कई गुना हैं कमाते, जितना खर्चें ‘दाम’ |

निस्स्वार्थ अब खर्च क्यों, कोई करे ‘छदाम’ ||

‘जुवा चुनावी’ जीत ले, ‘छल के पाँसे’ फेंक |

गान्धी जैसा कौन अब, चले ‘लकुटिया’ टेक ??१??


देखो ‘बगुले’ बन गये, ‘राजनीति के हंस’ |

ये सब कसते ‘प्रेम के, तालों’ में ‘विध्वंस’ ||

अपनी अपनी ‘ढपलियों’, पर अपने ही ‘राग’ |

जगह-जगह हैं फूँकते, ‘लीडर’ ‘कलह की आग’ ||

जला के ‘चूल्हा फूट का’, ‘रोटी’ रहे हैं सेंक |

गान्धी जैसा कौन अब, चले ‘लकुटिया’ टेक ??२??


अगर आपदा हो कहीं, अपना करें बचाव |

पा के तट ये स्वयं तो, डुबा के सब की ‘नाव’ ||

‘कुटिल कटारी’ हाथ ले, जिस की पैनी ‘धार’ |

‘मीठे’ बन कर काटते, हैं ‘आपस का प्यार’ ||

हमें बताओ कौन है, धीर-वीर औ नेक ?

 गान्धी जैसा कौन अब, चले ‘लकुटिया’ टेक ??३??



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About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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