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शुक्रवार, 10 मई 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ठ) आधा संसार | (नारी उत्पीडन के कारण) (१) वासाना-कारा (५) पर नुची कपोती |


ग्रन्थ-क्रम में प्रकाशित इस दोहा-गीत की विषय-वस्तु के स्रोत समाचारपत्रों के समाचार, आये दिन की जन-श्रुतियाँ,किम्वदंतियां और पारस्परिक चर्चायें या यदा कडा  दृष्टिगत घटनाये और सिनेमा-धारावाहिक हैं | 'भारत-पर्यटन' से मुझे सब से सहयोग मिला | इस प्रकार की घटनाओं के चित्रण का प्राप्त करना दुरूह है |
(सारे चित्र'गूगल-खोज'से साभार)
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‘जन-बल’,‘धन-बल’, ‘राज-बल’, की हो गयीं शिकार |
नारी  ’पशुता’  से  दबी,   विवश   ‘अर्द्ध  संसार’ ||



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‘मुस्तंडे - गुण्डे’   कई,  कई  ‘कु – धर्म - महन्त’ |
पाखण्डों  का   है  नहीं,  जिनके   कोई   अन्त ||


निसन्तान  कुछ नारियाँ,  फँस  कर  इनके ‘जाल’ |
सम्मोहित   तन   ‘सौंपतीं’,   होतीं  ‘पूत-निहाल’ ||
ढोंगों   के   ऐसे   खुले,  ‘तन्त्र – मन्त्र - बाज़ार’ |
नारी  ’पशुता’ से  दबी,  विवश   ‘अर्द्ध  संसार’ ||१||



‘झूठे वादों’  में  फँसीं,  कुछ  ‘धनिकों  के  जाल’ |
भोली   कई   किशोरियाँ,   खोतीं  ‘लाज-प्रवाल’  ||
कहते  ‘बिना दहेज़’  के,  करेंगे तुम से करें विवाह |
फिर   धोखा  दे   छोडते,  पूरी   कर के  ‘चाह’ ||
निर्धन   पिता  की  बेटियाँ,   सहतीं  ‘अत्याचार’ |
नारी  ’पशुता’ से  दबी,  विवश   ‘अर्द्ध  संसार’ ||२||




कल  चौराहे  पर  लुटी,  ‘कुल-ललना’  की ‘लाज’ |
जैसे   किसी  ‘कबूतरी’,  के   ‘पर’  नोचे  ‘बाज’ ||
‘तितली’ को  ज्यों  ‘छिपकली’,  निर्दय  रखे दबोच |
या  ‘गुलाब’  की  ‘पंखुड़ी’, ‘निठुर पवन’  ले नोच ||
‘धूर्त   दरिन्दे   काम   के’,   करते  ‘अत्याचार’ |
नारी  ’पशुता’ से  दबी,  विवश   ‘अर्द्ध  संसार’ ||३||

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About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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