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शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (त)दीवाली के आस पास | (शुभ कामनाओं का गुलदस्ता )

सभी मित्रों को शुभ दीपावली-'पन्च पर्व'| कुबेर इस रचना में समाज का पूजीवादी वर्ग का प्रतीक है और धन्वंतरी चिकित्सा पद्धातियों से जुड़े वर्ग का | आज दोनों एक दूसरे का पर्याय हो गये हैं |देखिये एक सार्थक प्रतीकवादी दोहा-गीत अभिधा, लक्षणा-व्यन्जना तीनों शब्द-शक्तियों में !
(सारे चित्र 'गूगल-खोज से साभार)      


 
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(१)धन-त्रयोदशी (धन्वन्तरि-कुबेर के प्रति)
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भूखे को दें अन्न-घर, वस्त्र, करें मत देर !
धन-तेरस के पर्व पर, श्री-धनवन्त कुबेर !!
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धन्वन्तरी, कुबेर हों, मत केवल ‘धन-दास’ |
रोग-निवारण के लिये, जायें सब के पास ||
धन-हीनों पर हों सदा, वैद्य-हकीम उदार |
औषधियों पर मत पड़े, ‘महँगाई’ की मार ||
‘लोभ-पिशाचों’ का करें, विनाश देर अबेर |
धन-तेरस के पर्व पर, श्री-धनवन्त कुबेर !!१!!

यम्-संयम औ नियम सब, करें संतुलित भोग |
तन-मन के सारे मिटें,  मारक-घातक रोग ||
चित में बसी बुराइयों, की न बढ़े परिमाप |
मत मन में व्यापें अधिक, घातक-पातक पाप ||
‘मानस-पत्’ पर प्रेम की, दें तस्वीर उकेर |
धन-तेरस के पर्व पर, श्री-धनवन्त कुबेर !!२!!

हर ‘इन्द्रिय’ में शुद्धता, हो, ‘मल’ रहे न शेष |
देश-वासियों को मिले, इतना ज्ञान विशेष ||
‘समाज-तन’ नीरोग हो, बढ़े और सुख-शान्ति |
‘धन ईश्वर से बड़ा है’, मत फैले यह भ्रान्ति ||
“प्रसून” पूँजीवाद में, करें न अब अन्धेर |
धन-तेरस के पर्व पर, श्री-धनवन्त कुबेर !!३!!
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सरदार बल्लभ भाई पटेल समर्पित एक रचना हेतु मेरे ब्लॉग प्रसून पर आप सादर आमंत्रित हैं | पधार कर कृतार्थ करें !     

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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