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शुक्रवार, 22 मार्च 2013

जल-दिवस पर विशेष - जल (तीन कुण्डलियाँ)






(१)

सुख मय जीवन चाहिये, रखें सुरक्षित नीर |
बिना नीर के देखिये, होगा विश्व अधीर ||
होगा विश्व अधीर, बिना जल सब कुछ सूना |
रात चौगुना बढ़े दुःख, औ रात में दूना ||
जल प्रतीक गति का है,और गति ‘जीवन-पालक’ |
करें सब इस का संचय’, मिलेगा इससे हर सुख ||


(२)

 जल के तीन स्वरूप हैं, ठोस, तरल औ भाप |
सभी रूप वरदान हैं, इतना समझें आप ||
इतना समझें आप, एक दूजे में बदले |
इन तीनों से जुड़े जिन्दगी के सब मसले ||
तीनों रचते चक्र, धरा के और गगन के |
ब्रह्मा, विष्णु, महेश सदृश हैं रूप ये जल के ||



(३)

‘नारायण’ से हुआ है, यह सारा संसार |
जल का इक पर्याय है, शाश्वत शब्द है ‘नार’ ||
यह पर्याय है ‘नार’, अखिल जग के जो खिवैया |
‘नारायण’ भी स्वयं ‘नार’ से उपजे भैया ||
आज प्रदूषण करता मैला धरा का आँगन |
इस से आकुल नदी सरोवर में नारायण ||



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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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