Blogger द्वारा संचालित.

Followers

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

दीपावली की रचानायें (५)दीवाली-गीत



************
चलो जलायें दीप, आज ‘दीवाली के’ !
मिल कर गायें गीत, ‘सुखद खुशहाली’ के ||
**********************************  
मत ‘नफ़रत की आग’ जलाये, कोई भी |
‘वैर के कर्कश राग’ न गाये, कोई भी ||
देखो, ‘सुन्दर अमन की उजली चादर’ में –
‘मैले’ अब मत ‘दाग’ लगाये, कोई भी ||
‘कजरी, गोधन, भजन, कीर्तन’ गूँजें बस-
‘छन्द’ सम्मिलित हो जायें, ‘कब्बाली’ के |
मत उभरें ‘स्वर’ कहीं ‘बदनुमा गाली के’ || 
चलो जलायें दीप, आज ‘दीवाली के’ !!१!!

‘मुहँ मोड़े रूठों’ को आज मना लेंगे |
‘दुश्मन’ को भी ‘अपना मीत’ बना लेंगे ||
‘शिकवे, गिले’ मिटा कर पास में बैठेंगे-
सुन कर ‘सब की’, ‘अपनी बात’ सुना लेंगे ||
मिटे ‘विमुखता’, ‘उन्मुखता की ताल’ बजे-
बन जायें हम आज, ‘जुड़े कर ताली के’ |
‘मौन अँधेरा’ काटें, ‘स्वर उजियाली के’ ||  
चलो जलायें दीप, आज ‘दीवाली के’ !!२!!

चलो, ’बाग’ से, ‘कलह के काँटे’, काटें हम !
करें ‘जतन’, ‘सब खरपतबारें’ छाँटें हम !!
‘दिल’,’वीराने’ हुये कहीं हुये कहीं, उनको ढूँढ़ें-
‘गन्ध भरी सुन्दर सौगातें’ बाँटें हम ||
‘हास’ बिखेरें, ‘सु-मन’, “प्रसून” सभी मिल कर- 
हम ‘पादप खुशनुमा’, ‘एक ही माली’ के |
हम हैं ‘सुन्दर पुइष्प’, ‘एक ही डाली के’ ||
चलो जलायें दीप, आज ‘दीवाली के’ !!३!!



***********************************

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

मेरे सभी ब्लोग्ज-

प्रसून

साहित्य प्रसून

गज़ल कुञ्ज

ज्वालामुखी

जलजला


  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP