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मंगलवार, 12 मार्च 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (क) वन्दना (२)गुरु-वन्दना





हे ईश्वर तुम ही मिलो,ले कर गुरु का रूप!
गुरु तुम्हारी ‘शक्ति’ है,’ जगमें परम अनूप !!  

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बिना तुम्हारे विश्व में, कौन है मेरे साथ ?

दो आशीष मुझे प्रभु, रख कर सर पर साथ !!

जिस पर गुरु का हाथ हो, होता वह निष्पाप |

उस का ‘तीनो शूल’ का, मिट जाता सन्ताप ||

ज्यों  छाता  करे, हरे ‘जेठ की धूप’ ||

गुरु तुम्हारी ‘शक्ति’ है’ जग में परम अनूप !!१||


‘चाल कुचाली’ चल चुका, हे गुरु ‘काल-कुचक्र’ |

सारे भारत पर पड़ी, दृष्टि ‘नियति’ की वक्र ||

प्रभु तुम्हीं तो राष्ट्र हो, तुम ही अखिल समाज !

इस समाज को ग्रस लिया, ‘कर्क रोग’ ने आज ||

‘कड़वा काव्य’ नीम सा, है औषधि स्वरूप |

गुरु तुम्हारी ‘शक्ति’ है’ जग में परम अनूप !!२||




यद्यपि लगती है बुरी, पीड़ा देती चोट |

पर ‘कुम्हार’ की चोट से, हरता ‘घट’ का खोट ||

चोट से हिलते जब कभी, हैं ‘वीणा’ के तार |

उपजा करती है तभी, ‘मधुर मधुर झंकार’ ||

और हाथ की चोट से, फटके ‘अन्न’ को ‘सूप’ |

गुरु तुम्हारी ‘शक्ति’ है’ जग में परम अनूप !!३||








About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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