Blogger द्वारा संचालित.

Followers

बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

भारत में लगी, बापूजी, आग रोकिये !

(गान्धी जयन्ती पर विशेष !)
 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 


दिलों में झुलसे हुये अनुराग रोकिये !

भारत में लगी, बापूजी, आग रोकिये !!

मुहँ बाये हुये दैत्य से दहेज़ देश में |

नारी के सुख पे लगे बन्देज़ देश में ||

पापों के घड़े हो रहे लवरेज देश में |

ज्वाला सी जली, फूलों की सेज देश में ||

वीरान सारा जग हुआ लालच की लपट में | 

मन डूबे हुये हविश भरे छल औ कपट में ||

ललनाओं के जलते हुये सुहाग रोकिये !

डस रही नागिन सी उनकी माँग रोकिये !!

भारत में लगी, बापूजी, आग रोकिये !!1!!


मैले तन नदियों के इन्हें शुद्ध कीजिये !

मैली हवायें हैं इन्हें विशुद्ध कीजिये !!

पर्यावरण के शत्रुओं से युद्ध कीजिये !

कुछ लोग मूढ़ हैं इन्हें प्रबुद्ध कीजिये !!

इनके घिनौने लोभ की मैली कुचाल से |

तृष्णा-समुद्र-ज्वार के खारी उछाल से ||

होने लगे उजाड़ वन औ बाग रोकिये !

धरती के तन पे लगे गहरे दाग रोकिये !!

भारत में लगी, बापूजी, आग रोकिये !!2!!


देखो, ये लोग रोज़ वृक्ष काट रहे हैं !

खुद रक्षा करने वाले यक्ष काट रहे हैं ||

भारत का सिर और वक्ष काट रहे हैं |

चोरी की कला में ये  दक्ष काट रहे हैं ||

ये हैं कुपुत्र देश के गद्दार हैं सारे |

ये परिग्रह के रोग से बीमार हैं सारे ||

ढपली पे इनकी है विनाश-राग रोकिये !

सोये हुये कब तक रहेंगे जाग रोकिये !!

भारत में लगी, बापूजी, आग रोकिये !!3!!

धरती का हरा-भरा वेश नष्ट कर रहे |

इसके सुहाने सुभग केश नष्ट कर रहे ||

सुन्दरता-परिवेश नष्ट-भ्रष्ट कर रहे |

देखो ये आज सारा देश नष्ट कर रहे ||

ऐसा ही रहा तो, पवन की साँस घुटेगी |

मधुवन की बहारों की ऐसे आस लुटेगी ||

दुर्गन्ध से महकेंगे अंगराग रोकिये !

मैली दीवाली मैला है फाग रोकिये !!

भारत में लगी, बापूजी, आग रोकिये !!4!!


जोंकों ने माँगी चारों ओर घूस देखिये !

खटमल रहे जनता का रक्त चूस देखिये !!

भारत को दर्द हो रहा महसूस देखिये !

ईमान की दृढ़ता बनी है फूस देखिये !!

कर्तव्य सारे धर्म के इंसान भूल कर |

है स्वार्थ-जाल में फँसा, पहँचान भूल कर ||

भाई का लहू भाई रहा माँग रोकिये !

“प्रसून” पुण्य से रहा है भाग रोकिये !!

भारत में लगी, बापूजी, आग रोकिये !!5!!

   





झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (12) दिगम्बरा रति (घ) लूटे अनंग-पतंग

(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
कितने मैले हो  गयेप्रेम-हँस  के पंख !
सदाचार की वायु में, उछली इतनी  पंक !!
सम्बन्धों की नाव  है,   रिश्तों  की  पतवार |
दोनों  टूटे  किस  तरह,   पार  करें  मझधार !!
सीताओं को मिल रहा, घर  में ही  वनवास !
कौशल्या भी बन गयींकैकेयी  सी  सास !!
लखन-भरत के स्नेह में, लगे स्वार्थ के डंक |
सदाचार की वायु में, उछली इतनी  पंक !!1!!
हमें मिला  है प्रगतिका, सा  नया इनाम!
नयी उम्र की फ़सल भीनशे  की  हुई गुलाम !!
फैशन-शो  की  नग्नता,   देखें  नौनिहाल !
हल  करने  को  घूमतेकामुक  कई  सवाल !!
भोलेपन  पर  लग  गये, कितने मलिन  कलंक !
सदाचार  की वायु  मेंउछली  इतनी  पंक !!2!!
छोटी   छोटी  तितलियाँढूँढ  रही   हैं   फूल !
कोमल-कमसिन  कोख  में, पलने  लागी  भूल !!
मर्यादा  की   डोर  सेबाँधी  लाज-पतंग !
दाँव-पें  से   कट   गयीलूटे   उसे  अनंग !!
बालापन  के  पटल   पर,   लिखे  वासना-अंक  !|
सदाचार  की वायु  मेंउछली  इतनी  पंक !!3!!

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

मेरे सभी ब्लोग्ज-

प्रसून

साहित्य प्रसून

गज़ल कुञ्ज

ज्वालामुखी

जलजला


  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP