Blogger द्वारा संचालित.

Followers

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

(मंगल-गीत (७) प्यारे कृष्ण कन्हाई | (एक व्याजोक्ति)

प्रियमित्रों ! पुन:अपनी आहात भावनाओं सहित  मंगल गीत माला के साथ उपस्थित हो कर  कृष्ण-जनमाष्टमी के पावन पर्व के व्याज में अपनी बात कहता हूँ | आप का परामर्श अपेक्षित है !
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)



=================
भारत में फिर आयें सब के प्यारे कृष्ण कन्हाई !
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
जम कर सब ने किया प्रदूषित, क्या ग्राम्य क्या शहरी |
‘यमुना’ में है ‘’राजनीति की मैली कीचड़’ गहरी ||
इस सभ्यता-नदी’ में कितने गिरे ‘पाप के नाले !
‘गँदले नीर’ में जनता ‘सिर से पावों’ तक है नहाई |
भारत में फिर आयें सब के प्यारे कृष्ण कन्हाई !!१!!

 
भीतर से ‘शैतान’ ‘पुरोधा, ऊपर से हैं फ़रिश्ते |
सम्बन्धों में पड़ीं ‘दरारें’, मिटे हैं सारे रिश्ते ||
सान्दीपन से गुरु हों ‘सच्चे ज्ञान’ की गरिमा मुखरे !
मित्र सुदामा से श्रीदामा से, हों बलराम से भाई !
भारत में फिर आयें सब के प्यारे कृष्ण कन्हाई !!२!!

 
‘प्रेम’, ‘वासना-काम’, ‘घिनौने आचरणों’ से मैला |
‘बूढे गुरु’ कुछ कामी लम्पट, बनते ‘रसिया-छैला’ ||
‘शिष्याओं-शिष्यों’ की ‘निष्ठा-आस्था’ को हैं छलते-
मार रहे ‘संस्कृति’ को लैसे गाय को कसे कसाई |
भारत में फिर आयें सब के प्यारे कृष्ण कन्हाई !!३!!

‘भीष्म पितामह’ की आयु के लोग ‘रूप’ पर मरते |
अपनी ‘पौत्री जैसी बालाओं’ का ‘शील’ हैं हरते ||
‘भाई’ लाज ‘द्रौपदी-बहना’ की’ अब नहीं बचाते –
‘अस्मत’ का ‘सौदा’ कर लेते, करते हैं रुसवाई |
भारत में फिर आयें सब के प्यारे कृष्ण कन्हाई !!४!!

“प्रसून” कई ‘पूतनाओं’ ने ‘ममता’ दूषित कर दी |
‘वात्सल्य’ में ‘दूध’ के बदले, ‘विष की धारा’ भर दी ||
‘प्रीति’ के ‘हर स्वरुप’ के तन पर, ‘कपट-दुधारी’ चलती-
इतने ‘घाव’ हैं ‘सम्बन्धों’ में, कैसे हो भरपाई ?
भारत में फिर आयें सब के प्यारे कृष्ण कन्हाई !!५!!

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!


       

कृष्ण-कन्हैया(२)था लिया जन्म भारत में घनश्याम ने |

कभी  कभी मन समाज के विद्रूप को देख कर ईश्वरोन्मुख हो उठता  है | यह एक अभिधा प्रधान गीत है | आज पुन: क्रिशन या अन्य पापोद्धारक अवतार की संसार को ज़रूरत है |
वजाय सोलह कलाओं के चौसठ कलाओं के स्वामी की | 
इस भजन में थोड़ा सा आधुनिक पुट है दूध में जल की तरह |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)


==========================
नन्द के थे वे प्यारे दुलारे ‘ललन’ |
थे यशोदा की ‘आँखों के तारे’ ललन ||
सारे वृज के ‘कन्हैया’ हुये अवतरित-
जब था पीड़ा से भारत लगा काँपने |
था लिया जन्म भारत में घनश्याम ने ||१||

रंग कोई भी उन पे है चढता नहीं |
असर उन पर किसी का भी पड़ता नहीं ||
लिप्त होता नहीं ‘रंग काला’ कभी-
इस लिये उन को काला किया ‘राम’ ने |
था लिया जन्म भारत में घनश्याम ने  ||२||

कंस के आचरण से हिली थी ‘धरा’ |
औ ‘मनुजता’ गयी, टूट कर चरमरा ||
‘न्याय का चक्र’ कान्हां ने हाथों लिया-
हाँ ‘रसातल’ में गिरती ‘धरा’ थामने |
था लिया जन्म भारत में घनश्याम ने  ||३||


त्याग दे ‘छल’ से मैला ‘कपट’ तू ज़रा |
‘मन की गीता के पन्ने’ पलट तू ज़रा ||
अपने ‘अपकर्म’ गिन ! अपने सत्कर्म’ गिन !!
‘पुण्य-पापों’ को कर आमने सामने |
यह सिखाया हमें कृष्ण घन श्याम ने ||४||

 बहुत सुन्दर “प्रसून”, ‘वृज के उद्द्यान’ के |
कृष्ण कारण थे ‘द्वापर के उत्थान’ के ||
‘सीप’ में बन्द कुछ ‘मोतियों’ की तरह-
उन की यादें संजोयीं, थीं ‘वृज-धाम’ ने |
था लिया जन्म भारत में घनश्याम ने  ||५||
=============================





About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

मेरे सभी ब्लोग्ज-

प्रसून

साहित्य प्रसून

गज़ल कुञ्ज

ज्वालामुखी

जलजला


  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP