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शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(झ)ऊँचे रिश्ते ‘प्यार’ के | (१)करना मत सन्देह, ‘हमारे प्यार’ पर ! (प्रेम-एक दर्शन)-


'माधुर्य गुण' एवं 'प्रसाद गुण' का समन्वय 
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प्रेम का अलौकिक स्वरूप मन और आत्मा के बीच की एक कड़ी है | यह प्रेम 'सांसारिक धरातल' पर भी 'स्थाई आनन्द' का कारण है और पूर्ण शुद्ध मन इस प्रेम का स्थल है | 
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से उद्धृत)  

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‘नत मस्तक’ हूँ आज ‘तुम्हारे द्वार’ पर |
करना मत सदेह, ‘हमारे प्यार’ पर !!
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‘काम’,’क्रोध’,’मद’,’लोभ’ बने ‘अंगार’ से |
‘जीवन के क्षण’, जल कर हुये हैं ‘क्षार’ से ||
धरा हुआ ‘मन’, ‘धन के लोभ की धार’ पर ||    
करना मत सन्देह, ‘हमारे प्यार’ पर !!१!!

‘माया मद मय मोह’ मिला ‘संसार’ से |
‘सम्बन्धों के जाल’ बुने हैं ‘विकार’ से ||
‘इच्छायें’ चलतीं ‘तीखी तलवार’ पर |
करना मत सन्देह, ‘हमारे प्यार’ पर !!२!!

 
जो भी ‘क्रय’ करते, ‘जग के बाज़ार’ से |
‘बोझल’ करता, लाद हमें हमें यों ‘भार’ से ||
‘धारा’ से फिर कैसे आऊँ ‘किनार’ पर ?
करना मत सन्देह, ‘हमारे प्यार’ पर !!३!!

खिन्न हुआ ‘मन’, मृषा ‘असत्-व्यापार’ से |
टूट चुका हूँ कभी ‘विजय’, कभी ‘हार’ से ||
हा धिक्, हा धिक्, हर ‘भौतिक उपहार’ पर |
करना मत सन्देह, ‘हमारे प्यार’ पर !!४!!

 
कैसे गूँजे ‘मन’, ‘वीणा-झंकार’ से |
‘कर की उँगली’ उलझी, ‘टूटे तार’ से ||
‘वृत्ति’ नाचती है, ‘पैनी दोधार’ पर |
करना मत सन्देह, ‘हमारे प्यार’ पर !!५!!

 

‘नौका’ उलझी, फँसी हुई ‘मझधार’ से |
चढ़ते और उतरते, ‘सागर-ज्वार’ से ||
क्या वश है, मेरा ‘पापी संसार’ पर |
करना मत सन्देह, ‘हमारे प्यार’ पर !!६!!
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About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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