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शनिवार, 25 अगस्त 2012

शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(द) -जागरण गीत-- (५) ! उठो धनञ्जय !

 


!  उठो धनञ्जय !
   

!!!!!!!!!


               


निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !



‘देवदत्त’ में ‘प्राण’फूँक कर,सोया ‘नाद’ जगाओ तो !!




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मूक-वधिर‘धृत-राष्ट्र’बन गये,’न्याय की देवी’गांधारी |

अपराधों की, अन्यायों की मची हुई मारा मारी ||

धूम मची कैसी‘विकास‘की,हैं खुश कितने नर नारी !!

‘मनमानी’कितनी,उच्छृंखल,इस पर बन्ध लगाओ तो !!

निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!१!!


जो श्रम करता है उसको भर पेट न मिलती है रोटी |

धन के मद में डूबे पूँजीवादी,नियति लिये खोटी ||

बाँट रहे ‘विष’ धीमा धीमा,बता के ‘अमृत की बूटी’||

जिनके हनन हुये हक़ उनको,अब हक़ अरे दिलाओ तो!!

निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!२!!

  

धन-लोलुप तस्कर,उत्कोची, कौरव – वंश यहाँ जागे |

किसी‘व्यवस्था’का वश चलता है न तनिक इनके आगे ||

सोये हैं  ‘बल-वीर’ कर्म से चुरा चुरा कर मन भागे ||

कर्तव्यों से इन्हें जोड़ कर, प्रगति पे इन्हें लगाओ तो !!

निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!३!!


  


लिसी ‘कर्ण’ को तिरस्कार की चोट कहीं मिलती’ पाना |

आदर दे कर, उसे उठा कर,गले लगा कर अपनाना ||

भटक गया हो किसी के कहने से उस को पथ पर लाना ||

‘भाई’ को ‘अरि’ की कुनीति-पंजे से तनिक बचाओ तो !!

निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!४!!

किसी ‘शिखण्डी’की न आड़ ले किसी‘भीष्म’का वध करना !

बदनामी का दाग लगेगा,देखो ऐसा मत करना ||

‘नेकनामियों’ की झोली में देखो ‘अपयश’ मत भरना !!

तुम सब को अपने‘पौरुष की सत्ता’ तनिक दिखाओ तो !!

निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!५!!


किसी‘सत्य-अश्वत्थ’की जड़ को काट के उसे उखाडो मत !

‘शीतल छाया ज्ञान की’ उस से मिलती, उसे उजाड़ो मत !!

‘गुरुता के सम्मान की चादर’ में कुछ धब्बे  डालो मत !!

युद्ध करो तो धर्म-युद्ध कर,’गुरु’ की आन बचाओ तो !!

निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!६!!
  


‘यक्ष’ हुये हैं छलिया,कपटी’,लाज न आती इन्हें तनिक |

‘पर्यावरण की देवी के रखवाले’ उसी के हुये ‘वधिक’

“प्रसून” के पादप उजड़े हैं,इनको दण्डित करो तनिक !!

पाओ यदि’वनवास’,‘वनों की काया’ आज बचाओ तुम !!

निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!७!!


 

शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(द) -जागरण गीत-- (४)अर्जुन जागो !


सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार उद्धृत




!!!अर्जुन जागो!!! 

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मत सोओ हे अर्जुन जागो,

अपने शस्त्र उठाओ तो !

‘असत्’दमन की पावन-


शिव शुभ रीति निभाओ तो !!





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‘पापों का दुर्योधन ’उठ कर,उठा रहा सर इधर उधर |

होने लगा ‘शान्ति-कुन्ती’ का, संयम देखो तितर बितर !!

ज़ार ज़ार रोती है, इसको, धीरज तनिक बँधाओ तो !

मत सोओ हे अर्जुन जागो,

अपने शस्त्र उठाओ तो !!१!!



 

‘मानवता’ बन् गयी ‘द्रौपदी’, ‘चीर-हरण’होने वाला |

चाहे अनचाहे नारी का‘शील-हरण’होने वाला ||

‘दुश्शासन’के ‘अंगुल-चंगुल’से तुम इसे छुड़ाओ तो !!



मत सोओ हे अर्जुन जागो,

अपने शस्त्र उठाओ तो !!२!!


  


लोभ, स्वर्ण के और धरा के,बने हुये ‘दुर्दम कौरव’ |

नाच रहे,मद भरे कुहिंसक कृत्य-नृत्य कलुषित-रौरव ||

लो ‘गाण्डीव’,’क्रान्ति’का कर में,’इन’का वंश मिटाओ तो !!



मत सोओ हे अर्जुन जागो,

अपने शस्त्र उठाओ तो !!३!!




 

 

न्याय-नीति ‘गान्धारी’ बन कर,नयनों पर पट्टी बाँधे |

नेता बने हुये ‘धृत-राष्ट्र’, होठ सिले चुप्पी साधे||

‘कर्म’,’धर्म’ को न्याय दिलाने,हा हा कार मचाओ तो !!



मत सोओ हे अर्जुन जागो,

अपने शस्त्र उठाओ तो !!४!!



  
  

धनवादी तस्कर,उत्कोची’ कितने ‘कंस’ यहाँ जागे !

सोये हैं ‘बल-वीर’ कर्म से,चुरा चुरा कर मन भागे ||

“देवदत्त” में ‘शब्द’ फूँक कर, उसका ‘नाद’ जगाओ तो !!

मत सोओ हे अर्जुन जागो,

अपने शस्त्र उठाओ तो !!५!!



 

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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